हनुमान जी सिख थे
योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को दलित बताया । इसके पीछे के इतिहास से तो योगी ही परिचित होंगें इसके पीछे उनका तर्क है की हनुमान जी वनवासी थे । दलित ही वन में रहते हैं जो शहर आ जाते है वो दलित नहीं रह जाते । राम जी ने अयोध्या आकर भी हनुमान जी को शहर में नहीं बुलाया क्योंकि दलित हनुमान जी को शहर कि आबोहवा रास नहीं आती । इस तर्क के आगे सभी नतमस्तक हो चुके थे जबकि एक नए तर्क ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया । केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने ब्यान देकर राजनितिक गलियारे में खलबली मच दी कि राम हनुमान के समय वर्ण व्यवस्था थी । सत्यपाल जी ने हनुमान जी को आर्य जाति का बताया है। उनका तर्क है की आर्य इस देश के मूल निवासी थे, राम और हनुमान चूंकि देश के मूल निवासी थे इस कारण उनके तर्क में भी दम है ।
उत्तर प्रदेश के मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण ने हनुमान जी को जाट बताया है, उन्होंने हनुमान जी को जाट बताने के लिए जो तर्क दिया है वो अकाट्य है । उन्होंने कहा है कि जाट किसी को भी मुसीबत में देखकर बिना कुछ भी जाने बूझे उसे बचाने के लिए रण में टूट पड़ता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि नहीं की हनुमान जी जाट थे पर यह तो सिद्ध हो गया कि चौधरी जी पक्के जाट हैं क्योंकि जाट बिना कुछ सोचे समझे जंग में कूद पड़ते हैं ।
बक्कल नवाब ने हनुमान जी को मुस्लिम बताया है, उनका कहना है की “हमारा मानना है हनुमान जी मुसलमान थे, मुसलमानों के जो नाम है, रहमान, रमजान, फरमान, ज़िशान, क़ुर्बान तो यह नाम उन्हें मुसलमान होने के कारण दिया गया ।” मैं इससे काफी कुछ सहमत हूँ पर पूरी तरह से नहीं ।
मेरे विचार से नहीं मुझे तो पक्का पता है कि हनुमान जी सिख थे । सिख शब्द का अर्थ होता है शिष्य । हनुमान जी के शिष्यत्व को देखते हुए ही सिख शब्द का प्रचलन हुआ । मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण जी के कथन में थोड़ा सत्य तो है पर पूरी तरह से नहीं । जाट मदद तो करते हैं पर सिर्फ जाटों की। वास्तविकता तो यह है कि शिष्य याने सिखों को आपने देखा होगा कि किसी की भी मदद को दौड़े दौड़े आ जाते हैं । हनुमान जी के हाथ में जो गदा थी कालान्तर में भारी होने के कारण उठाकर चलने में कठिनाई होने के कारण उस प्रतीक को तलवार से बदल दिया गया। हनुमान जी अपने बालों को भी नहीं काटते थे, जबकि राम और लक्ष्मण जी को आपने देखा होगा बिना मूंछ और दाढ़ी के। तब से सिखों कि परंपरा चल पड़ी कि उन्हें सिख कहा जाने लगा । हनुमान जी ने राम को विपत्ति में देखकर शिष्य धर्म का पालन किया । राम जी के क्षत्रिय होने के बाद भी उनके शिष्य बने उनकी सहायता की ।
राम जब गुरु नानक जी के रूप में इस जगत में आये तो हनुमान जी से मिलने कि इच्छा प्रगट की। हनुमान जी को पता चला तो उन्होंने कहा की मैं अपने राम के सिवा किसी और को अपना भगवान् नहीं मान सकता। नानक जी ने बताया की मैं ही राम हूँ, तो हनुमान जी ने कहा मैं आपको उसी रूप में देखूँगा तभी विश्वास करूंगा । नानक जी ने राम रूप में आकर उन्हें दर्शन दिए ।
तो अब हनुमान जी के सिख होने के सम्बन्ध में किसी को कोई शंका नहीं होनी चाहिए ।
मैं एक महान इतिहासकार इंद्रेश उनियाल जी से अवश्य गुजारिश करूँगां कि इतिहास खंगाल कर सच्चाई का पता लगाएं ।
आदरणीय दीदी, हम लोग यहाँ इंसान को इंसान को इंसान बनकर जीने की बाते कर
रहे हैं, यह राजनीतिग्य भगवानो की जाति के बारे बहस में फंसे हैं. बहुत बहुत धन्यवाद.
हा हा हा हा हा हा ,हंसी रूकती नहीं रवेंदर भाई .क्या कहूँ अप को पद्म श्री से सनमानत करना चाहिए .
आदरणीय गुरमेल जी, आपकी दी हुई पद्मश्री पाकर धन्य हो गया । पद्मश्री सरकार
से पाकर वो मजा नहीं जो आप जैसों से ऐसा सम्मान पाकर । आदरणीय लीला जी
के माध्यम से आपके समाचार मिलते रहता है आपको भी दीदी, नवभारत से जोड़ कर
रखती है । बहुत धन्यवाद ।
प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि हमेशा की तरह आपने बहुत अच्छा और बेहद रोचक ब्लॉग लिखा. हनुमान जी चाहे जिस जाति के हों, आपकी पोस्ट मजेदार किस्म की है. खूब हंसाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.