हमारे युवा किस दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज का वर्तमान कल का भविष्य तय करेगा, मसलन जिस सोच और विचारधारा को लेकर हम यहाँ से आगे बढ़ेंगे वही विचारधारा कल देश, काल और समाज को प्रभावित करेगी। आज आप तटस्थ होकर गहनता से अध्यन कीजिए सोशल मीडिया से लेकर विश्विद्यालयों तक जहाँ आपको युवाओं का झुण्ड सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक मुद्दों पर चर्चा करता नजर आयेगा। आपको एकदम से बदलाव दिखाई देगा। युवा आपको गंभीर चिन्तक दिखाई देगा, किन्तु इसके बाद का युवा आपको कुछ और दिखाई देगा। यानि किताबें पढ़ो, नई नई बातें सीखो, लेकिन घर और समाज में घुसने से पहले उन्हें छोड़ आओ।
अब आप युवाओं का चार भागों में वर्गीकरण करिये। पहला युवा चिन्तक है लेकिन कुछ कर नहीं सकता। दूसरा युवा चिन्तक है लेकिन कुछ करना नहीं चाहता। तीसरा युवा चिन्तक और मननशील है किन्तु अपने लिए अवसर चाहता है। इसके बाद एक चौथा युवा है जो इन सबसे अलग है उसकी कोई सोच और विचाधारा नहीं है वो भीड़ की शक्ल में खड़ा है तमाम लोगों द्वारा भरपूर उपयोग किया जा रहा है।
एक विचारधारा आज युवाओं को सीखा रही है कि सभी समस्याओं की जड़ धर्म और जाति है। किन्तु इसका निदान क्या इससे हाथ खाली दिखाई दे रहे है। मैं भी मानता हूँ आज कई सामाजिक समस्याओं में धर्म और जाति के हस्तक्षेप को नकारा नहीं जा सकता। किन्तु वह हस्तक्षेप राजनितिक धर्म और जाति का दिखाई देगा हाँ जहाँ इस राजनितिक धर्म की समस्या से बाहर निकलने के रास्ते सुझाने थे वहां इसे बवाल का पोचा बनाकर विचारकों, बुद्धिजीवियों द्वारा अपनी स्वयं की पैठ का फर्श चमकाया जा रहा है। अफसोस कि वरिष्ठ पत्रकार भी अपना बौद्धिक संतुलन खोकर इस बवाल की राजनीति की जय-जयकार कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर उन्हें फोलो करने वाले लोग उनकी पूजा करने पर उतारू हैं।
जहाँ राष्ट्रीय विचारधारा को आगे लेकर बढ़ना था वहां विचारधारा के नाम पर युवाओं को तीन भागों में बाँट दिया गया। एक तरफ लेफ्ट विंग है। दूसरी तरफ राईट विंग और तीसरा युवा लोक कथाओं, आत्ममुग्धता से भरे काल्पनिक इतिहास को सच माने बैठा है। कमाल देखिये तीनों ही लोग अपनी-अपनी विचारधारा को परमसत्य माने बैठे है।
असल में ये जो लड़ाई आज युवाओं को सिखाई जा रही है वह लड़ाई बहुत पहले खत्म हो चुकी है, किन्तु इतिहास से लाश निकालकर पुन: युवाओं को चीरफाड़ के लिए थमाई जा रही हैं। मसलन नेहरु और पटेल के रिश्ते कैसे थे, भगतसिंह का मुकदमा किस कारण कांग्रेस से जुड़ें लोगों ने लड़ा, संघ ने आजादी की लड़ाई में कितना भाग लिया, आंबेडकर किस जाति का नेता है, गाँधी जी ने मस्जिद में गीता का पाठ क्यों नहीं किया आदि-आदि। क्या यह मुद्दे हमें भविष्य में होने वाले जलसंकट, वायु प्रदूषण, बढती भूख, बेरोजगारी और जनसँख्या विस्फोट से निपटना सिखा रहे है?
मार्क्स, माओ, लेनिन, चे गुवेरा वह अतीत की समस्या के समाधान हो सकते हैं लेकिन भविष्य की समस्याओं के समाधान नहीं है। हर एक काल, हर एक युग में नई समस्याएं उत्पन्न रहती है तो उनके समाधान भी नये तलाशने होते है। जातिवाद समस्या हैं पर क्या इस समस्या पर बात करने, इस समस्या पर राजनीति करने या आंसू बहाने पर निपट जाएगीं? नहीं! क्योंकि हमारा हजारों सालों का अतीत इन सबसे रमा हुआ है। हाँ इस समस्या को भूलकर सब मिलकर अगली समस्याओं से मिलकर जब लड़ने चलेंगे शायद तब यह समस्या स्वयं समाप्त हो सकती है।
लेकिन अतीत से समस्या और झगडे निकालकर युवाओं को बाँटने का कार्य किया जा रहा है। विचारों के नाम पर दुनिया को अपने हाथों से नचाने वाले लोग भीमा कोरेगांव हल्दीघाटी की गुजरी घटनाओं पर चर्चा के संवाद खड़े करते रहेंगे, जब हमें देश के लिए शक्ति संतुलन साधने के लिए हथियारों की जरुरत होगी हमें हथियार बेचेंगे, जब हम शांत होकर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे तब हमें अतीत के मुद्दे थमा देंगे।
गौर से समझिये युवाओं को विचारधाराओं में किस तरह लपेटा जाता है। उन्हें पाश्चात्य संस्कृति की तरह खाओ-पियो मौज उडाओ, कौन देखता है जैसे जुमले बेचे जाते है। लेकिन कितने लोग समझते है कि यदि वह खाने पीने मौज उड़ाने वाले ही लोग है तो फिर नये आधुनिक अविष्कार, विज्ञान, टेक्नोलोजी नई-नई बिमारियों पर शोध कौन कर रहा है? असल में बस यही विचारों का हमला है जो सदा से होता आया है जिसमें विश्व की न जाने कितनी सभ्यतायें गुलाम हुई कितनी लुप्त हो गयीं, दूसरों को आनंद के नाम पर खोल दो और खुद उनकी जगह काबिज हो जाओं।
यानि एक अबूझ ताकत ही दुनिया को चलाती है। कई बार चीजें उस तरह से इच्छित या निर्देशित होती है जिस तरह वे घटती हैं सबसे पहले कमजोर विचारधारा के लोग प्रभावित होते है। यकीन नहीं तो देखिये किस तरह दुनिया भर में आज कई ऐसे आतंकी संगठन हैं जो विश्व को डराने का काम कर अपने विचारों के लिए जमीन तलाश रहे हैं जिसपर वे अपना मालिकाना हक समझ रहे हैं। उन्हें नतीजो की परवाह नहीं, न ही इस बात की परवाह कि यह जंग जायज है या नाजायज। वे किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। वह सफल भी होते है क्योंकि वह जानते है कि अधिकांश युवा उन्हीं विचारों पर भरोसा करते है जो उन्हें थमाएं जाते हैं।
युवाओं को चाहिए कि राष्ट्र को शक्तियां देने की जरूरत है आज हमारे सामने राजनितिक समस्या इतनी बड़ी नहीं है जितनी हमें दिखाई जा रही है। हमारी असली समस्या भविष्य में होने वाले प्राकृतिक साधनों, संसाधनों के रूप में है। लिहाजा युवाओं को चाहिए कि वे अपने कार्यों को सामंजस्य में रख कर अपने नए दुश्मनों से लड़ें। अतीत के युद्ध को अतीत में दफना दे यही उनकी जीत है। यदि उन्हें किसी प्रकार का संशय है तो किसी भी विचार धारा को समझने के दो तरीके होते हैं, पहला उस विचारधारा के साहित्य को पढ़े, दूसरा विचारधारा के अनुयायियों का निकट से निरीक्षण करे उनके सामने सब कुछ स्पष्ठ हो जायेगा कि वह किस तरह वैचारिक शिकारियों के जाल में उलझे है।..राजीव चौधरी