तुम्हारा नाम लिखता हूं
तुम्हारा नाम लिखता हूं
मैं सुबहो शाम लिखता हूं।
तुम्हारे इन लवों को मैं
गाफ़िल-ए-जाम लिखता हूं।
धरा पर तुमको तो अपना
मैं चारों धाम लिखता हूं।
रुप की राशि तुम प्रिये
मैं तुमको काम लिखता हूं।
समझ लो दिल की बातें तुम
‘अरुण’ मैं पयाम लिखता हूं।
— डा.अरुण निषाद