ग़ज़ल
वो यूँ ही मुझसे ना खफा होगा
मेरे दुश्मन ने कुछ कहा होगा
उसकी दहलीज पर झुका सर जब
दिल ने माना यहां खुदा होगा
यूं ही ना उसका खूँ गिरा होगा
कोई दिल का जख्म हरा होगा
मुझको डर आज क्यों लगे हैं यूं
कोई तूफां वहां उठा होगा
अजनबी आया क्यों भला मिलने
नाम मेरा कहीं सुना होगा
आंख से क्यों टपक रहे आंसू
कोई दोस्ती निभा गया होगा
दास्तां पर मेरी बहुत रोया
शख्स वो देख दिलजला होगा
दर्द वो भी मुझे खुदा देना
उसके हिस्सें में जो लिखा होगा
मेरे बारे में क्या भला कहता
अपनी आंखें झुका खड़ा होगा
कौन लाएगा कौन सी सौगात
दर्द मुझको मिला नया होगा
मेरा दिल यूं मचल रहा है क्यों
उसने चुपके से कुछ कहा होगा ।