गीतिका
छा रही कैसी बलाएँ क्या बताएँ साथियो
द्वंद के बाजार में क्या क्या सुनाएँ साथियो
क्यों तराजू को झुकाते बाट हैं बेमाप के
तौलना तो देखना पाला उठाएँ साथियो।।
क्यों गली में शोर है आया कहाँ से आदमी
जान लें आया कहा से औ बुलाएँ साथियो।।
क्या खजाना दे दिया वादे पुराना पूछना
क्या चुराया आप का आओ गिनाएँ साथियो।।
ये रियाया है पुरानी आप की कुर्सी नयी
भाव खाने की कला को क्यों भुनाएँ साथियो।।
देश का उद्धार हो ऐसा जिया में ठान लें
छा तमाशा देखना गाती फिजाएँ साथियो।।
मान ले जी आज भी माया हुई साथी नहीं
एक सी होती नहीं ज्योती जगाएँ साथियो।।
आ गए झाँसे में जो वाको न गौतम रूठना
भूख लागे है सभी को जां लुटाएँ साथियो।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी