छंदमुक्त काव्य
कूप में धूप
मौसम का रूप
चिलमिलाती सुबह
ठिठुरती शाम है
सिकुड़ते खेत, भटकती नौकरी
कर्ज, कुर्सी, माफ़ी एक नया सरजाम है
सिर चढ़े पानी का यह कैसा पैगाम है।।
तलाश है बाली की
झुके धान डाली की
सूखता किसान रोज
गुजरती हुई शाम है
कुर्सी के इर्द गिर्द छाया किसान है
खेत खाद बीज का भ्रामक अंजाम है
सिर चढ़े पानी का यह कैसा पैगाम है।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी