मुक्तक
देखिए तो कैसे वो हालात बने हैं।
क्या पटरियों पै सिर रख आघात बने हैं।
रावण का जलाना भी नासूर बन गया-
दृश्य आँखों में जख़्म जल प्रपात बने हैं।।-1
देखन आए जो रावण सन्निपात बने हैं।
कुलदीपक थे घर के अब रात बने हैं।
त्योहारों में ये मातम सा क्यूँ हो गया-
क्या रावण के मन के सौगात बने हैं।।-2
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी