मुक्तक
नहीं सहन होता अब दिग को दूषित प्यारे वानी।
हनुमान को किस आधार पर बाँट रहा रे प्रानी।
जना अंजनी से पूछो ममता कोई जाति नहीं-
नहीं किसी के बस होता जन्म मरण तीरे पानी।।-1
मानव कहते हो अपने को करते दिग नादानी।
भक्त और भगवान विधाता नाता प्रभु वरदानी।
गज ऐरावत कामधेनु जहँ पीपल पूजे जाते-
लिए जन्म भारत में कैसे नेता बन अभिमानी।।-2
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी