बे ख़ता था दिल मेरा फिर भी निशाना बन गया
आपका जब से मेरे दिल में ठिकाना बन गया ।
देखिए अंदाज भी कुछ शायराना बन गया ।।
है जमीं की तिश्नगी का अब्र को अहसास कुछ ।
अब विसाले यार का मौसम सुहाना बन गया ।।
आरिजे गुल के चमन से जब चला तीरे नज़र ।
बेख़ता था दिल मेरा फिर भी निशाना बन गया ।।
उसको देखा है बदलते रंग गिरगिट की तरह ।
आदमी को देखिए कितना सयाना बन गया ।।
इश्क़ छुपता ही नहीं होने लगी सबको ख़बर ।
देखते ही देखते दुश्मन ज़माना बन बन गया ।।
कर दिया जिनका मैं चर्चा हुस्न की तारीफ़ में ।
उनके कानों तक न पहुँचाऔर फ़साना बन गया।।
बेसबब ही नफ़रतें बोई गईं होंगी यहां ।
फिर कोई शायर नगर में सूफियाना बन गया ।।
कुछ ज़रूरत आपकी थी कुछ ज़रूरत थी मेरी ।
उम्र की दहलीज़ पर रिश्ता घराना बन गया ।।
यूँ तो मैंने कर लिया था जाम से तौबा मगर ।
जब तुम्हें देखा तो पीने का बहाना बन गया ।।
आँख पर छाई अना और थी अदा बहकी हुई ।
आपका लहजा सनम जब क़ातिलाना बन गया ।।
नफरतों के दौर में फेंके गए पत्थर बहुत ।
जोड़ कर मेरा भी यारो आशियाना बन गया ।।
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी