गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कैसे कह दूं हुआ हादसा ही नहीं ।
दिल जो टूटा अभी तक जुड़ा ही नहीं।।

तब्सिरा मत करें मेरे हालात पर ।
हाले दिल आपको जब पता ही नहीं ।।

रात भर बादलों में वो छुपता रहा ।
मत कहो चाँद था कुछ ख़फ़ा ही नहीं ।।

आप समझेंगे क्या मेरे जज्बात को ।
आपसे जब ये पर्दा हटा ही नहीं ।।

मौत भी मुँह चुराकर गुज़र जाती है ।
मुफ़लिसी में कोई पूछता ही नहीं।।

कह दिया आपने बेवफा जब मुझे ।
और कहने को कुछ भी बचा ही नहीं ।।

होश ही उड़ गये हुस्न को देखकर ।
क्या हुआ तेरा ज़ादू चला ही नहीं ।।

हम कदम दर कदम यूँ ही बढ़ते रहे ।
फ़ासला अब तलक कुछ घटा ही नहीं ।।

इश्क़ में कोई उलझा रहा आपके ।
आप सुलझा सके मसअला ही नहीं ।।

जल गया ये चमन रफ़्ता रफ़्ता सनम ।
पर धुआँ देखिए कुछ उठा ही नहीं ।।

बात करती असर फैसले के लिए ।
आप ने मुझको शायद सुना ही नहीं ।।

    -- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

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