ग़ज़ल -तुम्हारे काम वो आए नहीं क्या
नए हालात पढ़ पाए नहीं क्या ।
अभी तुम होश में आए नहीं क्या ।।
उठीं हैं उगलियां इंसाफ ख़ातिर ।
तुम्हारे ख़ाब मुरझाए नहीं क्या ।।
सुना उन्नीस में तुम जा रहे हो ।
तुम्हें सब लोग समझाए नहीं क्या ।।
किये थे पास तुमने जो विधेयक ।
तुम्हारे काम वो आए नहीं क्या ।।
जला सकती है साहब आह मेरी ।
कहीं तालाब खुदवाए नहीं क्या ।।
है टेबल थप थपाना याद मुझको ।
अभी तक आप शरमाए नहीं क्या ।।
यूँ हक़ का द्रौपदी सा चीर खींचे ।
तरस संसद में कुछ खाये नहीं क्या।।
दुशाशन की अभी है जांघ टूटी ।
उन्हें अंजाम दिखलाए नहीं क्या ।।
यहां चाणक्य के बंशज बहुत हैं ।
वो मट्ठा जड़ में डलवाये नहीं क्या ।।
मिटाए जा रहे सदियों से हम तो ।
हमें तुम भी मिटा पाए नहीं क्या ।।
-- डॉ नवीन मणि त्रिपाठी