गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल -पता हनुमान की है जात जिनको।

बहुत से लोग बेघर हो गए हैं ।
सुना हालात बदतर हो गए हैं ।।

मुहब्बत उग नहीं सकती यहां पर ।
हमारे खेत बंजर हो गए हैं ।।

पता हनुमान की है जात जिनको।
सियासत के सिकन्दर हो गए हैं ।।

यहां हर शख्स दंगाई है यारो ।
सभी के पास ख़ंजर हो गए हैं ।।

सलीका ही नहीं चलने का जिनको ।
वही भारत के रहबर हो गए हैं ।।

लुटेरे मुल्क़ में बेख़ौफ़ हैं अब ।
बदन पर सब के खद्दर हो गए हैं ।।

मेरा धन लूट कर देते जो तुमको ।
वही हाकिम मुकर्रर हो गए हैं ।।

करप्शन की सुनामी देखिए तो ।
नदी नाले समंदर हो गए हैं ।।

कलम यूँ ही उगलती आग कब है ।
मुझे भी गम मयस्सर हो गए हैं ।।

अदालत में तो उसकी हार तय है ।
तुम्हारे साथ अफ़सर हो गए हैं ।।

   डॉ नवीन मणि त्रिपाठी 

*नवीन मणि त्रिपाठी

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