कविता

भारत की नारी

कभी किसी से नहीं डरी जो , वह भारत की नारी है 

दुष्टों के संहार हेतू वह , सौ लोगों पर भारी है   ।।

नहीं भूलते हम झांसी को और न उसकी रानी को 

मर्दों को लज्जित कर डाले नमन वीर मर्दानी को  
जीत लिया दिल उसने  चाहे युद्ध भले वह हारी है

दुष्टों के संहार हेतू वह  सौ लोगों पर भारी है  ।।
ऐसे वीरों से शोभित ,    इतिहास हमारा गौरव है 

 मान द्रौपदी भंग किया वह दुष्ट दुशासन कौरव है 
तब नष्ट मूल से करने की  द्रौपदी ने मन में ठानी है 

फिर क्या होता है मत पूछो हर होंठ पे यही कहानी है 
बाद महाभारत के उसने केश लहू से संवारी है 

दुष्टों के संहार हेतू वह  सौ लोगों पर भारी है  ।।
अब आज वक्त है आन पड़ा  फिर से खुद को पहचानो तुम

वो बीत गया जब अबला थीं अब खुद को समझो सबला तुम 
खुद को पहचान के कपि ने भी था अपना रूप विराट धरा 

जा पहुँचे थे लंका भीतर दानव दल में हाहाकार भरा 
ले रौद्ररूप अब दुर्गा का हुँकार तुम्हें भरना होगा 

इन कलियुगी महिषासुर का अब अंत तुम्हें करना होगा 
आ गई परीक्षा की है घड़ी करनी तुमको तैयारी है 

दुष्टों के संहार हेतू वह सौ लोगों पर भारी है ।।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “भारत की नारी

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय राजकुमार जी, लाजवाब कविता । भारत कि नारी का भारत में ही सम्मान
    नहीं है । आपके अनुपम साहित्य में तो नारियां कमाल दिखा रही हैं ।

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