मैं मस्त फकीर
मैं मस्त फकीर
मेरा कोई नहीं ठिकाना
मुझे नहीं पता
कल कहाँ जाना ?
अपनों ने मुझे भुलाया
मैंने भी अपनों का मोह मिटाया |
छोड़ के सारा झमेला,
मैं चला अकेला ||
मान मिले या अपमान मिले
सब मन से स्वीकारूंगा
इस झूंठे संसार में रहके
धूनी कहीं रमाऊंगा?
धन-दौलत का साथ मिले
पल दो पल का
मैं सृष्टि रचईया के गुण गाऊंगा,
उसकी भक्ती में ही पागल हो जाऊंगा |
जग की चालों से बिल्कुल उलटा चलकर
राह नई बनाऊंगा
मैं निबलों-बिकलों का बनकर सहारा
मानवधर्म निभाऊंगा ||
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक तारौली गुर्जर,
फतेहाबाद, आगरा 283111,उ.प्र.