कदम बढ़ाता चल
गरल सुधा बन जाता है जब मीरा सी हो भक्ति।
अभय हो जाता नर जब हो निष्काम कर्म शक्ति।।
अगणित मदन हो न्योछावर शिव चरणों मे तब।
मिलती देवों को उनके चरणों मे सच मे अनुरक्ति।।
स्मृति आ जाती जग में जब मिट जाती आसक्ति।
अन्तर्मन प्रफुल्लित होता जग उठती भावभक्ति।।
उत्तम से उत्तम ऋषि मुनि भी सहज न पाए मुक्ति।
बड़ा कठिन अध्यात्म पथ ये सरल नहीं है विरक्ति।।
कोई बिरला मोह निशा से जागे तभी मिले मुक्ति।
राह में शूल बिछे पुरोहित कदम बढ़ा मिलेगी शक्ति।।
कवि राजेश पुरोहित