लघुकथा – ज्योति सुधर गई
स्कूल जाने के समय कई बार ज्योति का पेट दर्द होता था। कुछ समय बाद वह घर
में ही खेलती रहती थी। एक दिन वैसा ही दर्द होने पर उसके पापा उसे डाक्टर
के पास ले गये। इनजेक्शन लगा। घर में सब नाश्ते में पराठा खा रहे थे।
ज्योति को बिस्कुट दूध मिला। भोजन में उसे खिचड़ी मिली। सब पुलाव खा रहे
थे। रात्रि में उसके लिए दलिया बना। सबको छोले भटूरे। ज्योति को समझ में
एक सबक मिला कि झूठ बोल कर उसने यह सजा पाई है। निश्चय किया कि अब वह
बहाना नहीं बनाएगी। ज्योति ने अपनी गलती स्वीकार कर मम्मी पापा से सारी
बोला एवं वादा किया कि वह भविष्य में झूठ नहीं बोलेगी। ज्योति सुधर गई।
दिलीप भाटिया