नूर की मासूमियत
नूर आज बहुत ख़ुश थी, क्योंकि आज उसका सातवाँ जन्मदिन था , इसलिए आज सुबह ही उसने पूरा घर सर पर उठा रखा था ! वह चाहती थी , कि आज उसका जन्मदिन बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाये ! साथ ही साथ उसे ख़ुशी इस बात की भी थी , कि आज उसके अब्बूजान उसके लिए आज नया स्कूल बैग और जूते लाएंगे ! वही हुआ, शाम जैसे ही बाहर रोशनी अधरे में परिवर्तित हुई , वैसे ही घर के अंदर नूर के जन्मदिन पर खूब रोशनी हो गई ,उसके अब्बूजान उसके लिए नए जूते और नया स्कूल बैग लेकर आये थे !
वह देख कर नूर बहुत ही अधिक खुश हुई , क्योंकि काफी समय बाद पिता जी ने उसकी कोई जिद्द पूरी की थी !
अगली सुबह नूर अपना नया बैग लेकर और नए जूते पहन कर स्कूल गई ,और क्लास में जाकर सारे बच्चों को चिढा रही थी ,
“देखों आज तो मैं नया बैग लेकर और नए जूते पहन कर आई हूँ ! सब बच्चे तो नहीं पर कुछ बच्चे , जो उसके दोस्त थे , वह तो नूर को देखकर खुश थे ,परन्तु कुछ बच्चों को लगता था , कि नूर अपनी नई चीजों का दिखावा ही कर रही है ! छुट्टी का समय हो चूका था , नूर की स्कूल बस अभी रुकी हुई थी , क्योंकि सारे बच्चे अभी बस में नहीं आये थे , इसलिए नूर बस चलने का इंतज़ार करने लगी , वही उसकी निगाह अचानक स्कूल के सामने एक दुकान पर पड़ी , जहाँ स्कूल बैग , वर्दी , जूते मिलते थे , ठीक उसी के सामने एक चाय वाले की दुकान पर बैठे एक छोटी सी बच्ची को देखकर उसे बहुत बुरा लगा , क्योंकि बच्ची के पैरो में जूते फटे हुए , और बैग की जगह उसने किताबें एक थैले डाली हुई थी ,नूर इतनी भावुक हो गई , जितनी आज से पहले कभी नहीं हुई थी , कि वह बस में अपना सारा बैग खाली करके , जूते उतार कर उस बच्ची के पास चली गई , और बड़ी मासूमियत से बोली ;
” ये लो मेरे बैग , तुम इसमें अपनी सुन्दर किताबें डालना , और ये जूते भी पहनो , कल से तुम अब यह फटे जूते नहीं डालोगी “
इतने में बच्ची कुछ बोलती , बच्ची के पिता जी वहाँ आ गए ,और बोले ;
” नहीं बेटी इसकी जरूरत नहीं है , मैं इसे कुछ दिनों में दिलवा ही दूँगा “
वही नूर ने बड़ी मासूमियत से कहा
” अंकल मैंने कल ही लिए है , बिल्कुल भी पुराने नहीं है , आप देख सकते है “
“अरे बिटिया ऐसी बात नहीं है , अगर तुम हमारी बिटिया को अपना बस्ता और जूते दे दो गी , तो तुम क्या इस्तेमाल करोगी ?”
नूर ज़वाब देती है ,
“अंकल मेरे पास सब कुछ है, और अभी मेरे पहले वाले जूते और मेरा पहले वाला बैग ठीक है ! “
इतने में बच्ची के पिता कुछ कहते ,
कि नूर बस की तरफ़ आ जाती है , और अंदर आकर बैठ जाती है ! लेक़िन उसको यह पता नहीं था , कि उसको यह सब करते हुए, उसके अब्बूजान ने वहाँ से जाते हुए देख लिया था , और आज उनके मन से सिर्फ़ एक ही आवाज़ आई ;
“कि आज सही में मेरी बिटिया बड़ी हो गई है !”
चाँदनी सेठी कोचर