दस साल की चुनौती
आज कल फेसबुक और इंस्टाग्राम पर देखा जा रहा हैं, #Ten Year Challenge कल मैंने भी सोचा ज़रा देखा जाये, आखिर क्या बला है यह! काफी जांच पड़ताल करने के बाद पता चला कि आपके आज के और दस साल पहले की तस्वीर का मिलना, कि इतने सालों में आप में क्या बदलाव आये हैं, और क्या नहीं! अगर 10 साल पहले और आज की स्थिति देखने का इतना शौक ही है, तो महिलाओं की स्थिति को जांचा जाए! दस साल पहले भी उनके साथ शोषण और बलात्कार हो रहे थे, आज भी हो रहें हैं! हर रोज़ सुबह अखबार देखो या टी.वी, हर तरफ हमें दस साल से यही सब देखने को मिल रहा है! क्या इस स्थिति को कोई नहीं देखना चाहता है? आखिर कब तक महिलाओं के साथ ऐसा बुरा होता रहेगा! किसी छोटी से बच्ची को उसकी माँ घर से बाहर इसलिए नहीं जाने देती कि कहीं उसकी मासूम सी छोटी बच्ची किसी हैवान का शिकार न बन जाए! अगर कोई बेटी ज्यादा समय तक अपने घर वालों से बात न कर पाये, किसी कारण से, तो घर वालों के मन में बुरे-बुरे ख़्याल आने लगते हैं कि उनकी बेटी ठीक तो होंगी न! आज भी अगर लड़की एक कुंवारी माँ बन जाये, तो दुनिया सिर्फ उसे ही दोष देती है, क्योंकि समाज को लगता है, कि गलती तो लड़की की ही होगी. मतलब हद ही है. इस बात पर भी आप सारा दोष लड़की पर डाल देते हैं, जैसे इसमें लड़के का कोई क़सूर ही नहीं है! समय जरूर बीत रहा है, पर न तो लोगों की सोच बदली लड़कियों को लेकर, न ही एक बिन ब्याही माँ को समाज में अभी तक मान-सम्मान मिला है!
तस्वीर बदलने से कुछ नहीं होता. बदलना ही है तो, अपनी सोच और अपने विचारों को बदलने की आवश्यकता है और यही समय की मांग है कि स्त्री को भी समाज और देश में, केवल कागज़ पर ही नहीं, बल्कि वास्तव में उसे सम्पूर्ण अधिकार और सम्मान और समता का बर्ताव मिले.
चाँदनी सेठी कोचर
द्वारका ( नई दिल्ली )