कविता

अलाव

नहीं पिघला अब तक कभी

मेरी आंखों में जलता

पारदर्शी अलाव 

जहां छुपी है ख्वाहिश 

कुछ कर गुज़र कर

जी जान से मर मिटने की 

चिंगारी बनी रहती है जिसमें

कि राख होना फितरत नहीं

नहीं उठता क्रंदन कभी

डटा रहता है जज़्बा जहां 

होने को कुंदन कोई       

  – शिप्रा खरे

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - [email protected]