अलाव
नहीं पिघला अब तक कभी
मेरी आंखों में जलता
पारदर्शी अलाव
जहां छुपी है ख्वाहिश
कुछ कर गुज़र कर
जी जान से मर मिटने की
चिंगारी बनी रहती है जिसमें
कि राख होना फितरत नहीं
नहीं उठता क्रंदन कभी
डटा रहता है जज़्बा जहां
होने को कुंदन कोई
– शिप्रा खरे