स्मृतियाँ
कुछ स्मृतियाँ कभी शेष नहीं होतीं,
कुछ स्मृतियाँ कभी शेष नहीं होतीं,
जम जाती है वक़्त की धुंधली परत,
कुछ लोग, कुछ पल, कुछ एहसास,
चलते हैं साथ – साथ जीवन के,
कुछ चेहरे, कुछ घटनायें, कुछ एहसास,
आते हैं अचानक और पोंछ देते हैं,
उस धुंधली परत को, देते हैं धकेल
उस स्मृतियों के भँवर में जो,
कभी बन जाती हैं मुस्कान चेहरे की,
तो कभी भर देतीं है नमी आँखों में,
स्मृतियाँ कभी शेष नहीं होतीं……
कुछ स्मृतियाँ जुड़ी होतीं हैं
जिन्हें हम ओढ़ते- बिछाते,
और खुद से लपेटे रहते हैं
पूस की ठिठुरती सुबह में,
शॉल हो जैसे, ये भरती हैं
गर्माहट जीवन के ठिठुरते पलों में…
हाँ ये स्मृतियाँ कभी भी शेष नहीं होतीं।
…………… कविता सिंह
bahut khub…….