रितुराज के स्वागत में
खिले टेसु जैसे कि षोडशी की तरुणाई सी।
रूत हुई महुआ सी, जिंदगी फिरे बौराई सी।
रितुराज के स्वागत में वंदनवार सजा दो,
नाचे मन मयुरा, दे रहा हो मानो बधाई सी।
गुनगुनाती सुबह, वो पंछियों का कलरव,
जैसे गा रही रागिनी, ऐसे चले पुरवाई सी।
सज गए खेत, खिल गई चहुँ ओर सरसों,
अमुआ की डार डार, झूलों ने ली अंगडाई सी।
इन्द्रधनुष की बैठ पालकी, आया है फागुन,
गोरे गालों पर ये सतरंगी आग लगाई सी।
ओमप्रकाश बिन्जवे”राजसागर”