सपनों के पनघट पे
मन की व्याकुलता का व्यापार
किया जाए,सपनों के पनघट पे।
जीवन में फिर चेतना का संचार
किया जाए,सपनों के पनघट पे।
न उम्र खोये मान मनुहार में,
बँधे विश्वास की डोर से,प्यार में,
आज मन के मीत पर उपकार
किया जाए,सपनों के पनघट पे।
विश्वास के ये रिश्ते गहरे हो,
उमंगो की उडान पे न पहरे हो,
अहम के परदो को तार तार
किया जाए,सपनों के पनघट पे।
अमुआ के नीचे,नदिया किनारे,
धडकन धडकन को पुकारे,
साँसों की छुअन को फिर सितार
किया जाए,सपनों के पनघट पे।
मैने बाँच ली अँखियों की भाषा,
नेह बंधन की होगी नई परिभाषा,
प्रणय निवेदन को स्वीकार
किया जाए,सपनों के पनघट पे।
ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर