अयोध्या
अयोध्या हो हिंदू का,या हो मुसलमान का
यह तय करने में न ,खून बहे किसी इंसान का
खून बहाकर धर्म बढ़े,हथियारों से हम लड़ें
यह न ख्वाहिश अल्लाह की, और न चाहत भगवान का
क्यों न बातों से ही बात बनाएं, गंगा जमुनी तहजीब बहाएं
है बातचीत ही सुगम मार्ग, हर समाधान का
क्यों दंगे अच्छे खासे हों,क्यों हम खून के प्यासे हों
भाई का ही क्यों कत्ल करें, क्यों बढ़ाएं मान शैतान का
हमे अमन चैन से रहना है,अब एक धार में बहना है
क्योंकि दीवाली में अली बसे,राम अंश हैं रमजान का
— विक्रम कुमार