कविता

मजबूरी

किसी की मजबूरी पर हंसकर
मत खोलो अपने पाप का खाता
लाचारी का मजाक उड़ाकर
मत जोड़ो हैवानियत से नाता
किसी गरीब को नीचा दिखाकर
इंसानियत की मिट्टी न पलीद कर
क्योंकि गरीबी, मजबूरी और लाचारी
कोई लाता नहीं खरीद कर

— विक्रम कुमार

विक्रम कुमार

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