कविता मजबूरी विक्रम कुमार 25/01/201925/01/2019 किसी की मजबूरी पर हंसकर मत खोलो अपने पाप का खाता लाचारी का मजाक उड़ाकर मत जोड़ो हैवानियत से नाता किसी गरीब को नीचा दिखाकर इंसानियत की मिट्टी न पलीद कर क्योंकि गरीबी, मजबूरी और लाचारी कोई लाता नहीं खरीद कर — विक्रम कुमार