कविता

वतन का ख़ून 🇮🇳

मैं हिंदू हूँ या मुस्लिम हूँ,
पर भारत की वासी हूँ,
बंद करो तकरार मंदिर-मस्जिद का अब प्यारे,
गीत वतन में गाती हूँ।।

ख़ून बहे चाहे हिंदू का,
या मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई का,
है वह ख़ून वतन का प्यारे,
नहीं किसी सौदाई का।।

रखना याद हमेशा यह बात प्यारे,
ख़ून अगर बहेगा किसी का,
तो चोट लगेगी भारत को,
फिर चाहे हो वह किसी भी जाति का।।

क्या रक्खा मंदिर-मस्जिद में?
यहाँ कण-कण में भगवान बसते हैं,
अपने ह्रदय में झाँककर तो देखो प्यारे,
राम रहीम यहीं पर बसते हैं।।

सब मिल गीत गाओ ख़ुशी मनाओ,
है गणतंत्र दिवस आज़ प्यारे,
छोड़ मंदिर-मस्जिद की आँख-मिचौनी,
ज़ोर से बोलो हम सब भारतीय हैं।।

जय हिंद-जय भारत
बंदे मातरम् 🇮🇳

मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक