कुम्भ पर दोहे
सुधा गिरा जब कुम्भ से, माया पुरी प्रयाग।
उज्जैन नासिक तब से, है पावन भू भाग ॥
सागर से निकला सुधा , ये मंथन का सार।
सुधा कैसे पान करे, सभी किये विचार॥
गंगा यमुना शारदा, है साथ में प्रयाग।
करने स्नान कुंभ चले, जप दान पुण्य याग॥
माघ सुपावन मास है, कुम्भ करे स्नान॥
प्रभात उठकर प्रभु का, जप कर और ध्यान ॥
संगम का जल शीत है, स्नान कर तीन बार।
जो जप तप में रत रहै, वही जाये भव पार॥
— राम ममगाँई पंकज देवभूमि हरिद्वार