कविता

कोई सिखे तो…तुमसे।

किसी की उदासियों में भी
खुशियां बिखेरना
हंसना हंसाना
कोई सिखे तो…तुमसे।
         अधूरे लफ़्ज़ों और
          बिन बात की बातों से भी
          सब कुछ कह देना
           कोई सीखे तो… तुमसे।
खुद से अपरिचितों को
खुद से ही परिचित कराना
कोई सीखे तो… तुमसे।
             भावों और एहसासों को
             बिन कहे बिन बोले
              शब्दों में उकेरना
              कोई सीखे तो.. तुमसे।
असीमित कर्तव्यों में बंधे
फिर भी अनजाने से
संबंधों का निर्वहन
कोई सीखे तो..तुमसे।
             इस प्रैक्टिकल जमाने में
             खुद के लिए ही जीना मुश्किल
              औरों के लिए भी जीना
               कोई सीखे तो… तुमसे।
बिन कुछ कहे
बिन कुछ किए
अपनी आदत लगाना
कोई सीखे तो.. तुमसे।
               खुद की तकलीफों पर
                विजय फतह कर,
               खुल के हंसना हंसाना
                कोई सीखे तो.. तुमसे।
अनजाने अजनबियों को भी
पल में अपना बनाना
कोई सीखे तो.. तुमसे।
विद्यालय नहीं तुम, जो
सिखाओ समावेशित विषय
हां! विश्वविद्यालय हो तुम
एक विषय सिखो तो
दूसरे छूट जाते हैं….

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : [email protected]