व्यंग्य : आमबजट बनाम सावधान इंडिया
लीजिए साब , अब तक जैसे पेश होता आया है ठीक वैसे ही फिर पेश हो गया सन् 2019 का आमबजट। बजट पेश होने के बाद सरकार खुद ही खुद की पीठ थपथपा रही है,,और बजट को जनहितैशी बता रही है,, सरकार ने आमजन को भरमाने के लिए न तेरी है, न मेरी है, यह सरकार तो बहुतेरी है का संदेश देने वाला लोक लुभावन आमबजट पेश किया है। सरकार ने मीडिया के समक्ष फेंकते हुए यह तक कह दिया कि यह बजट उसका महज टेलर है,जो विकास लोकसभा चुनाव 2019 के बाद देश मे होंगे।
लेकिन उधर आमजन जो तीन राज्यों मे सरकार को सम्मान पूर्वक लपेट चुका है, वो बजट पेश होने वाले दिन मे पूरे समय अपने निजी महत्वपूर्ण काम छोड़कर टीवी मे धारावाहिक या फिर मोबाईल पर सविता भाभी डाट काम जैसी साईटों से खुद को अलग रखकर बजट सत्र देख रहा था,आखिर मे कह ही दिया कि “हाल ही मे पाँच राज्यों में हुए चुनाव टेलर ही हैं असल पिक्चर उन्नीस के लोकसभा चुनाव मे ही दिखाएंगे”। शायद देश के वित्त मंत्री जी को भी यह बात बखूबी पता है कि समूचे बजट सत्र के दौरान ज्यादातर लोग टैक्स दर सुनने के लिए टीवी खोलकर बैठे होते हैं और अगर इसे जल्द ही बता दिया जाएगा तो लोग सुनने के बाद फौरन ही दूसरे चैनल मे सावधान इंडिया देखने लग जाएंगे।मेरे मुहल्ले का “फेंकू चायवाला” आम बजट के बारे में जानने के लिए बेहद उत्सुक था उसका सवाल यह था कि आमबजट को आखिर आमबजट ही क्यों कहते हैं..? मै ने उसे बताया कि प्रति वर्ष देश मे आम के पेड़ मे बौर आने के पूर्व संसद मे बजट पेश होता जिसमे कुछ आमजनों की हालत कच्चे आम की तरह होती है जिन्हे काटा जाता है एवं कुछ आमजनों की हालत उस पके आम की तरह होती है जिन्हे चूसा जाता है।पहले विदेशियों ने देशवासियों का खून चूसने का पुनीत कार्य किया अब उनके जाने के बाद यह कार्य देश कि सरकारें पूरी ईमानदारी से कर रही हैं और संभव है कि आगे भी करती रहेंगी।इस आमबजट मे किसानों के लिए विशेष पैकेज बनाया गया है। सरकार यह भी जानती है कि किसान बोने के बाद काटना भी जानता है, ऐसे मे यदि किसान की होली दीवाली ठीक न रही ..!! तो वह सरकार का दिवाला करने में तनिक समय न लेगा। आने वाले उन्नीस के चुनाव मे सरकार बीस इक्कीस होने के बजाय उन्नीस न हो जाय इसलिए आयकर मे छूट देने की बात कही,लेकिन कहीं बेहतर होता यदि आय बढ़ाने पर सरकार जोर देती।
बहरहाल आमबजट हर वर्ष संसद मे होने वाली एक औपचारिकता है जो वर्षों से चली आ रही है आगे चलती रहेगी।
बस आखिरी मे अदम गोंडवी साहब के लिखे शे’र याद आए कि-
महल से झोपड़ी तक एक दम घुटती उदासी है
किसी का पेट खाली है किसी की रूह प्यासी है
कभी तक़रीर की गर्मी से चूल्हा जल नही सकता
वहाँ वादों के जंगल मे सियासत बेहया सी है ।
— आशीष तिवारी निर्मल
बहुत ही बेहतरीन व्यंग्य!