ज़ुबानें हो गईं गाली-गाली
बादल बना है फिर सवाली
आसमाँ क्यों खाली-खाली
किसने लूटा है गुलिस्तां को
बिखरा हुआ है डाली-डाली
किस-किस से करे हिफाज़त
डरा हुआ हर माली-माली
चाँद खा गया सेंक के कोई
रात रह गई काली-काली
उम्मीदें मर गईं चिल्ला के
खूँ से भरा है थाली-थाली
मंदिर-मस्जिद तोड़-ताड़ के
अब बोलते हैं आली-आली
कीमतें तय की हर चीज़ की
और नोट मिले जाली-जाली
खुद ही बोलते,खुद ही सुनते
खुद ही बजाते ताली-ताली
ये भी हद है नारेबाजी की
वायदे पड़े हैं नाली-नाली
बातें हो गईं बन्द कभी की
सलिल सरोज