बहुत बर्दास्त की तेरी बेवफाई
बहुत बर्दास्त की तेरी रुसवाई
दिल तो दिल आत्मा चिल्लाई
आसमां में छाए बादल की तरह
आंख तेरी बेवफाई में भर आयी
भींच लेती बाहों में जैसे सिहरन
सिमट गया मिली जब से तन्हाई
सुनामी की लहरें कहर बरफ़ाती
याद तेरी भी कुछ ऐसे ही रुलाई
शहर भी उजड़ गया उस बाढ़ में
जिसमे कभी थी तू खिलखिलाई
हर वो लम्हा , बिछड़ गया हमसे
जिनसे मिलके निभाई थी वफाई
रूठ गयीं ये आंखे अब मेरी उससे
जिसने कभी इन्हें दुनिया दिखाई
संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”