जराह बन इलाज करूँ अश्क से
गर तू बीमार है, हमारे इश्क में
जराह बन इलाज करूं अश्क से
निजोर ना समझना , आशिकी को
जरीफ चेहरा बताया हर किसी को
ज्ञान इतना नहीं प्रज्ञाल कहलाऊँ
हर वक्त तुम्हे अपने ही पास पाऊं
भीग गयी बीथि ह्रदय द्वार की मेरे
जंजीरे जब से जकड़े प्यार की तेरे
जबरन श्राय खाली किया दिल का
रुबाब गायब हुआ तेरी महफ़िल का
आ फिर आशियाना बना ले इश्कको
नैनो से रफा दफा कर इस अश्क को
संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”