विकलांग मानसिकता
” पैदा हुआ तब कितना रोये थे तुम इसकी विकलांगता को देख कर …” मां आज बहुत कुछ कहना चाहती थी पर रूक गई।
” हाँ शायद तुम ठीक ही कहती थी शारीरिक विकलांगता की कमी इंसान दिमाग से पूरी कर सकता है पर मानसिक विकलांगता को दूर करने में मुझे कई साल लग गये ।” पिता आज ग्लानि महसूस कर रहे थे।
“हाँ इन सब में मेरे बेटे का बचपन निकल गया ,पर उसने पांवों से तूली पकड़ अपने जीवन का चित्र खुद ही बना लिया ।” मां अब कुछ कठोर भाव लिये बोल रही थी
” मेरे बेटे के बचपन और मेरी जवानी की कीमत इतनी सस्ती नहीं कि आपकी ग्लानी से चूक जाये ,अब मैं जीवन बगिया में कैक्टस नहीं पाल सकती हमने अकेले जीना सीख लिया है ।” दीवार पर लगा चित्र अपने पर इतरा रहा था आज तूली ने गजब का चित्रांकन किया माँ के मनोभाव और बेटे की पांवों से चलने वाली तूली का मेल जीवन को नये आकार दे सकता है माँ की कही ये पक्तिं सार्थक हो गई ।