उसका भी वजूद है ——
एक स्त्री
अच्छी माँ
अच्छी बहन
अच्छी बेटी भी है
लेकिन अच्छी बहू नही ,
अच्छी पत्नि नही तो ,
तो आत्म-मंथन कीजिये
कमी कहां है।
एक स्त्री
बचपन से
जवानी तक
कभी पिता के सम्मान
तो कभी भाई के मान
के लिये जीती
और झुकती रही
गर आज सब बातों का
विद्रोह कर रही
तो आत्म-मंथन कीजिये
कमी कहां है ।
एक स्त्री
नरम डाली
की तरह झुकती रही
पीहर को छोड
सुसुराल में अपनेपन का
फूल खिलाने के लिये
जड़े मजबूत करती रही
लेकिन आज काटों भरी है
तो आत्म-मंथन कीजिये
कमी कहां है ।
पर हे पुरूष
तुम मंथन नही करोगे
क्योंकि अहम् के वशीभूत जो हो
##रजनी चतुर्वेदी (विलगैंया)