कविता
लो आ गया नया ज़माना,
स्वच्छ भारत बन गया है एक बहाना ।
क्या भारत की स्वच्छता का इरादा ,
टूट रहा है यह स्वच्छ भारत का वादा ।
सैलानी हैं आते यहाँ,
दिखती है गंदगी देखें जहाँ ।
क्या वैष्णो देवी की पवित्र पहाड़ियां
लिपटी जो रहतीं हैं, बर्फीली साड़ियां
एवं मनुष्य की अपवित्रता का साथ
दया करो हम पर तो भैरवनाथ ।
इसी गंदगी का करना है अंत
तभी काम करेंगी भक्ति और मेलों में प्रभु या संत
— सहज सभरवाल