कविता – सच्चा दोस्त
परिवेश में ,
क्या-क्या नही बदला ।
हवा, पानी, पड़ौसी ,
मगर आपका मिजाज नही बदला ।
वो भी कभी इधर,
कभी उधर चला,
सर्दी, गर्मी, बरसात में ,
मगर आपका अंदाज नही बदला ।।
हरवक्त यही सोचता हूं ,
इन हवाओं का रूख देखकर ,
कि आपसे दोस्ती भी ,
खुदा की खुदाई से कम नही है ।
आज भी देखता हूं
समय के सफर में ,
तब सोचता रह जाता हूं कि
आप किसी भाई से कम नही है ।।
क्या होता है
सच्चा दोस्त,
कह पाना
जरा मुश्किल है ।
मगर यह जरूर है ,
इस सफर के बाद
कि अब वो
हमारा ही दिल है ।।
वो मुझे , मैं उसे ,
बात से, मौन से,
अब आंखों की,
आहट से समझने लगे है ।
इस इश्क को भी ,
जमाना जानने लगा है ,
अब क्या कहें , हम तो,
एक-दूसरे पर जीने-मरने लगे है ।।
तभी तो किसी ने ,
उस फरिश्ते को
बड़े अदब, सलीके से,
अपना दोस्त कहा होगा ।
वो दोस्त भी यूंही ,
खुदा नही हुआ ,
वो भी किसी के इश्क में
गहरे अंधेरों में रहा होगा ।
— मुकेश बोहरा अमन