ग़ज़ल
आग फैले तू ऐसी कार न कर
तेज बारूद ही की धार न कर।
घुस जा घुसना है अगर, सीने में
शूल बन पीठ पे तू वार न कर।
ठेस छोटी ही मुझको काफी है
मान जा खुद को याँ लुहार न कर।
खतरा हो जिससे तेरे होने पर
खुद में ऐसा कोई सुधार न कर।
बाकी है काफी दरमियाँ अपने
बात छोटी पे आर-पार न कर।
— सतविन्द्र कुमार राणा