अभिज्ञान-पत्र
श्रद्धा सुमन चढ़ाऊँ कैसे,कोई सूझे युक्ति नहीं।
जब तक दुश्मन जिंदा फिरते,तब तक होनी मुक्ति नहीं।
सैनिक जान गँवा देते हैं,स्वप्न सुरक्षा के बुनते।
नहीं उठाते ठोस कदम क्यों,निंदा-निंदा बस सुनते।
नहीं भुजाएँ अब तक फड़कीं,लगता पानी खून हुआ।
दुबक गया साहस कोने में,या रोड़ा कानून हुआ।
संविधान को बदलो अथवा,धाराएँ बलिदान करो।
बहुत हुआ, आतंकहीन अब,मेरा हिन्दुस्तान करो।
जयचंदों-गोरी के हाथों,चौहान रहेंगे मरते।
माफी वाला मंत्र हमेशा,यदि जाप रहेंगे करते।
खोल शिखा चाणक्य सरीखी,लेना है प्रण एक नया।
प्रथम समूल उखाड़ेंगे हम,तब जाएँगे बोधगया।
अभी प्रतीक्षा कैसी बोलो,और भयावह वार करे।
डाल कान में उँगली बैठे,पुलवामा चित्कार करे।
आखिर किस दिन के खातिर ये,रखे हुए हथियार सभी।
समय इशारा करें दुष्ट का,बारूदी सत्कार अभी।
रखो ताक पर बातचीत को,पाञ्चजन्य हुंकार करो।
पंचशील सिद्धांत जलाओ,धर्मयुद्ध स्वीकार करो।
नहीं आँकड़ों में उलझाओ,डींग हाँकना बंद करो।
मिटा समस्या नीर पिएँगे,नारा यही बुलंद करो।
माँगें सूनी कई हो चुकीं,बच्चे पिता विहीन हुए।
बुझे कई आँखों के तारे,बूढ़े नयन मलीन हुए।
सभी जरूरी काम छोड़ दो,सारे दौरे रद्द करो।
सबक करारा इसे सिखाओ,मत भारत की भद्द करो।
सर से ऊपर पानी निकला,सीमा होती है सबकी।
पंख काटने को चींटी के,फौज सुसज्जित है कब की।
गीदड़ को जब मौत सताए,शहरों की तब ओर चले।
जलता दीप बुझाने दौड़े,और पतिंगा स्वयं जले।
बुजदिल कायर श्वान नपुंसक,सिंहों पर आघात करें।
शांति-शांति अब रटना छोड़ें,हमले अब बालात् करें।
वसन अहिंसक त्यागो पल में,हिंसा का संधान करो।
धरती माता की अभिलाषा,लाल-लाल परिधान करो।
अगर साँप आस्तीनों वाले,लगें उठाने फन अपने।
करो उन्हें भी राख जलाकर,पूरे होंगे तब सपने।
बहुत क्षमा हमने दे डाली,जिसका यह परिणाम हुआ।
निर्लज्ज नहीं माने कब से,करगिल-सा संग्राम हुआ।
मात्र इसे गलती कहने से,होगा अब निस्तार नहीं।
इक बदले दस शीश चाहिए,इससे कम स्वीकार नहीं।
हाय अबोधों की लगती है,लिखकर रखना बात कहीं।
जाने दो सीमा पर विधवा,यदि तुम में औकात नहीं।
कैसी मजबूरी-बाधाएँ,क्यों करते हो देर भला।
बदला-बदला रटते-रटते,खूब गया है बैठ गला।
फूल चढ़ाना तब हो सार्थक,जब वैरी का रक्त बहे।
कीर्तिमान गढ़ने में माहिर,गढ़ डालो वक्त कहे।
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’