गीतिका/ग़ज़ल

मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था 

मैंने तो सिर्फ आपसे प्यार करना चाहा था

ख़ाहिश-ए-ख़लीक़ इज़हार करना चाहा था

धुएँ सी उड़ा दी आरज़ू पल में यार ने मिरि

तिरा इस्तिक़बाल शानदार करना चाहा था

भले लोगों की बातें समझ न आईं वक़्त पे

मैंने तो हर लम्हा जानदार करना चाहा था

तिरे काम आ सकूँ इरादा था बस इतना सा

तअल्लुक़ आपसे आबदार करना चाहा था

इंतिज़ार क्यूँ करें फ़स्ल-ए-बहाराँ सोचकर

चमन ये ‘राहत’ खुशबूदार करना चाहा था

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’

डॉ. रूपेश जैन 'राहत'

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