गज़ल
“ग़ज़ल”
सखा साया पुराना छोड़ आये
वसूलों का ठिकाना छोड़ आये
न जाने कब मिले थे हम पलों से
नजारों को खजाना छोड़ आये।।
सुना है गरजता बादल तड़ककर
छतों पर धूप खाना छोड़ आये।।
बहाना था सुखाना गेसुओं का
लटें उलझा जमाना छोड़ आये।।
बुलाने पर नहीं आती बहारें
गुथा गजरा लगाना छोड़ आये।।
जिये जा रहे हैं सँकरी गली में
ठठाकर मुस्कुराना छोड़ आये।।
सुना गौतम बहुत नाराज रहता
उसे लगता बहाना छोड़ आये।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी