कविता
यूँ ही हवाओं में उड़ते
हुए अक्षरों को अपनी
मुट्ठी में पकड़ कर
एक अक्षर तुम ले आओ,
एक अक्षर मैं ले आऊं
और एक अल्फाज बनें.
अपने मन की मिट्टी में
संभावनाएं उगाकर
एक पंख तुम लाओ
एक पंख मैं लाऊँ
और एक परवाज़ बनें.
कुछ पुराना छोड़ के
कुछ नया जोड़ के
नियति की धारा को
थोड़ा सा मोड़ के
कुछ कदम तुम चलो
कुछ कदम मैं चलूँ
और एक नया अंदाज बनें.
नींद में कुछ रंग तुम
घोलो थोड़ा जागकर,
कुछ रंग मैं घोलूँ
नींद की परतें उघाड़कर
और फिर रंगों के फैलाव से
एक नया ख्वाब बनें…
— राज मालपानी