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तो फिर हमारा क्या होगा ?

(पर्दा खुलते ही किशोरीलाल के घर के हाल का दृश्य दिखाई देता है। मध्यम वर्ग का परिवार। हाल के दाहिनी ओर घर से बाहर जाने का रस्ता है , बाईं ओर घर के अंदर जाने का । उस के ठीक पीछे सुधीर और सोहन के कमरों में जाने के दरवाजे हैं। पीछे सोसाइटी की कामन लाइट की रोशनी फ्लैट में आती दिख रही है। किशोरीलाल (उम्र 80 वर्ष ) और चंदादेवी (उम्र 78 वर्ष) घर में अकेले ही हैं। उनके दोनों बेटे सुधीर और सोहन अपने परिवार सहित फारेन में रहते हैं।)
किशोरीलाल – (कराहते हुए) पेट में बहुत गड़बड़ हो रही है चंदा ।
चंदा – ऐसा क्या खा लिया जी। आपको हमेंशा कहती हूं बाहर से कुछ मत खाके आया करो। घर में सब कुछ है ना।आप जो बोलोगे मैं बना दूंगी।
किशोरीलाल – अरी भागवान। तू इस उमर में कितना काम करेगी। वैसे भी हम चारों दोस्त शाम को घूमने निकलते ही हैं। शाम के समय घर से निकलो तो घूमने का घूमना भी हो जाता है और आते आते रामू काका की दुकान पर मिल बैठ कर कुछ चटपटा भी खा लेते हैं। रामू काका की कमाई हो जाती है, और हमारी गटरमश्ती। (हॅसते हुए) वो मोटू मुरारी तो रामू काका की मसालेदार भेल का दीवाना है दीवाना। क्यों जब तेरे लिए रामू काका के हाथ के बने हुए मिर्ची भजिये लाता हूं तो तू भी तो उंगलियां चाट के खाती है ना ।
चंदा – ( हंसते हुए) मेरे शरीर में आज भी ताकत है । आपकी तरह बूढ़ी नहीं हो गई।
किशोरीलाल – फिर भी खाना बनाते समय किचन में पसीना आता है तेरे को।
चंदा – वो तो गर्मी की वजह से होता है । दो जनांे का खाना बनाने में कितना समय लगता है जी। कभी कभी तो दूध पीकर ही सो जाते हैं।फिर बाहर का कचरा क्यूं खाने का । कुछ हो गया तो कौन संभालेगा हमें । बच्चे तो यहां हैं नहीं । हम दोनों को ही एक दूसरे का सहारा बन के जिं़दगी का बाकी सफर पूरा करना है ।
किशोरीलाल – (ठंडी आह भरते हुए) हां …..दो दो बेटों के होते हुए भी हमारी जिंदगी में कोई सुख चैन नहीं। बच्चों का जीवन संवारने के लिए उनको ऊंची तालीम दिलवाई। वो दोनों पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी की लालच में हमें ही छोड़ गए ।
चंदा – हमें तो क्या, हमारा वतन भी छोड़कर चले गए। जिस देश की माटी ने उन्हें जनम दिया, अपनी गोद में खिलाया उसी माटी को भुलाकर…
किशोरीलाल – बच्चों को इस बात का एहसास होता तो और क्या चाहिये था चंदा।
चंदा – क्यों हम बच्चों का भविष्य बनाने के लिए खुद का वर्तमान और भविष्य बिगाड़ देते हैं ? क्यों? बोलो…….
किशोरीलाल – (हंसकर गीत गाता है) जो चला गया उसे भूल जा । वो न सुन सकेगा तेरी सदा। पहले भी हम दोनों साथ थे, आज भी हम दोनों साथ हैं ।(फिर से गीत गाता है) जनम जनम का साथ है ,निभाने को।सौ सौ बार मैंने जनम लिए।।
चंदा – (हंसते हुए) आप भी ना, विषय को बदलने में बड़े उस्ताद हो। अपने पड़ोसी खुशालदास के बच्चों को ही देख लो। वो भी तो इंजिनीअरिंग पढ़े हैं। सभी भाइयों ने साथ मिलकर नई इंडस्ट्री लगाई ।अब पूरा परिवार एक साथ रह रहा है।
किशोरीलाल – संस्कार अपनी समझ से ही आते हैं चंदा। उसके लिए कोई ट्रेनिंग नहीं लेनी पड़ती।
हमने बच्चों को कितना समझाया.. भले ही अलग घर बसा कर रहो, पर यहीं रहो,इसी शहर मे। कम से कम हमारी आंखों के आगे तो रहोगे। पर उन्होने हमारी एक नहीं मानी।
चंदा – (आंसू पोंछते हुए) पता नहीें पिछले जनम में कौनसे पाप किये थे जो इस जनम में ये सब
भुगतना पड़ रहा है ।हमारे बच्चे इस उमर में हमें किसके सहारे छोड़कर चले गए …।
सुनो जी मैं बच्चों को फोन करके समझाऊंगी , उन्हें अपनी तकलीफें बताऊंगी , उनसे हाथ जोड़कर विनती करूंगी ।
किशोरीलाल – ना, ना, अब की बार ऐसी गल्ती मत करना। उल्टा तेरी बेइज्जती हो जाएगी। बहू बेटे तुझे अपशब्द कहें ये मुझसे सहन नहीं होगा । याद है पिछली बार सुधीर ने फोन पर क्या कहा था ?‘‘बोलो कितने पैसे चाहिये ।’’
चंदा – हां और मीनाक्षी ने भी कहा था आप से घर का काम नहीं जमता तो नौकर चाकर रखो । सेवा के लिये नर्स रखो उनके भी पैसे हम भरेंगे। ‘‘ जितने मर्जी पैसे ले लो पर हमें तंग मत करो ।’’
किशोरीलाल – जिं़दगी में पैसा ही सब कुछ है ना। दोस्त रिश्तेदार कुछ भी नहीं। याद है चंदा जब
मेरे दोस्त नाटक की रीडिंग करने घर पर आते थे …..

फ्लैश बैक –
(किशोरीलाल के घर का नज़ारा। मुरारीलाल, ठाकुरदास, केवलराम, और किशोरीलाल नाटक के डाइलाग्ज़ की रीडिंग कर रहे हैं।)
केवलराम – हां भाई ठाकुरदास तंू क्या कहना चाहता है।
ठाकुरदास – किशोरीलाल तू ना बहुत बड़े बड़े डाइलाग लिखता है। ये देख न भीष्म पितामह का डेढ़ पेज का एक डाइलाग ।
किशोरीलाल – तूने कभी महाभारत पढ़ी है ।
ठाकुरदास – नहीं पढ़ी तो क्या हुआ। भीष्म पितामह के बारे में तो जानता हूं। उसकी उमर का
रोल करने वाला इतना लंबा डाइलाग कैसे बोलेगा। तू बता केवलराम।
मुरारीलाल – नाच न जाने आंगन टेड़ा।
ठाकुरदास – तू नाच के बता मोटे। अच्छा है तुझे भीम का रोल दिया है। कहीं श्रीकृष्ण या भीष्म पितामह का रोल मिलता तो?
(सभी हंसते हैं )
केवलराम -हंसो मत। इसी की वजह से तो सीरियस स्क्रिप्ट में जान आई है। रही बात केवल की तो उसको लाइव शो में वैसे भी मज़ा नहीं आता। रिकार्डिंग वाले नाटक चाहिये उसको। जिसमें डाइलाग याद करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
(फिर सभी हंसते हैं )
मुरारीलाल – ऐसा तो मत बोलो यार बेचारा डिस्करेज हो जाएगा।
ठाकुरदास – कितनी भी मजाक उड़ाओ मुझे कोई फरक नहीं पड़ने वाला। मैं तो ये रोल
करूंगा ही करूंगा ।बस थोड़ा काट कर छोटा कर दो। बाकी मैं एक्टिंग में
संभाल लूंगा। पिछले बीस साल से नाटकों में काम कर रहा हूं ।
(किशोरीलाल की बहू मीनाक्षी प्रवेश करती है)
मीनाक्षी – (अंदर आते हुए) पापा….।
किशोरीलाल – बोल बेटा ।
मीनाक्षी – आपको कितनी बार समझाया है कि अपने फालतू दोस्तों को घर मत लाया करो। आप लोग चिल्ला चिल्लाकर डाॅइलाग बोलते हो तो डाली की पढ़ाई डिस्टर्ब होती है। आपका क्या है तकलीफ तो हमको होती है ना।
किशोरीलाल – सारी बेटा हम तो धीरे धीरे बात कर रहे थे।
मीनाक्षी – धीरे बात कर रहे थे तो किचन तक आवाज़ कैसे आई। खुद तो खाली बैठे हो दूसरों को भी बिगाड़ते हो। डाइरेक्टर बनने का इतना ही शौक है तो बाहर जाकर बनो। घर वालों को क्यों परेशान करते हो ।
मुरारीलाल – सारी बेटा आगे से ऐसी गल्ती नहीं होगी ।किशोरीलाल हम जाते हैं ।
(सभी चले जाते हैं। चंदा नाश्ते की प्लेटें लेकर प्रवेश करती है)
चंदा – क्या हुआ सब लोग चले क्यों गए ?
मीनाक्षी – लो इनको जैसे पता ही नहीं था कि घर में क्या चल रहा है और ये महारानी उनकी
आवभगत में लगी है। (चंदा से) आपको पता है ना कि बच्चों कि पढ़ाई कितनी
इंपार्टंट है ।
किशोरीलाल – मीनाक्षी वो तेरी सास है ।
मीनाक्षी – सास है तो घर के कायदे कानून का तो ख्याल रखे।
किशोरीलाल – कायदे कानून, ये घर है या कोर्ट ?
मीनाक्षी – हां बाबा ये घर है। घर के भी अपने नियम होते हैं। उन नियमों से चलना घर के हर मेंबर की जिम्मेदारी है। (टोकते हुए) आप ये सब क्यों पूछ रहे हो आप को अपनी ग़लती का एहसास तो होना ही नहीे है ना। आपके दोस्त आज भले ही चले गए पर देखना फिर दो चार दिन बाद मुहं उठाकर चले आएंगे। सासू मां उनकी सेवा जो करती है।
किशोरीलाल – (गुस्से में) मुरारीलाल ने साॅरी बोला ना । बात खतम हो गई । अब ज्यादा ज़बान चलाने की ज़रूरत नहीं है ।
मीनाक्षी – मैं बच्चों के भले के लिए कह रही हूं। कुछ करने के पहले सोच तो लिया करो ?
चंदा – बहू ?
(सुधीर प्रवेश करता है।)
सुधीर – क्या हुआ मीनाक्षी ? तुम्हारी आवाज़ बाहर तक आ रही है ।
मीनाक्षी – सुबह सुबुह कहां चले गए थे। मैं यहां मरी जा रही हूं ।
किशोरीलाल – (गुस्से में ) मगरमच्छ के आंसू बहाना बंद करो बहू और साफ साफ बताओ तुम कहना क्या चाहती हो ।
मीनाक्षी -(सुधीर से गुस्से में) देखो जी मैं कहे देती हूं। मुझसे ये सब बर्दाश्त नहीं होगा। पापाजी जब
देखो तब घर में आवारा दोस्तों की महफिल लगाकर बैठते हैं ।
किशोरीलाल – मेरे दोस्त आवारा नहीं हैं । अच्छे खासे संपन्न घरानों से ताल्लुक रखते हैं ।
मीनाक्षी – आप तो ये भी नहीं सोचते कि घर में बहू बेटियां हैं ।
चंदा – ऐसा मत बोल बेटा। इनके सारे दोस्त तेरे पिता समान हैं। (रोते हुए) एक परिवार की तरह
तब से हमारे साथ हैं जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे ।
सुधीर – बस भी करो मां ।आपकी आंखों से तो जब देखो तब गंगा जमुना की धारा बहते रहती है।
मीनाक्षी – रोकर सेंटीमेंटल ड्रामा करने की कोशिश मत करो प्लीज़ । पहले ही आपके बहुत
नाटक देख चुकी हूं ।
चंदा – बहू
मीनाक्षी – अच्छा हुआ सोहन समय रहते अमेरिका चला गया । मैं तो यहां दिन रात पिसती रहती हूं।
चंदा – अब बहुत हो गया । साफ साफ बताओ आप लोगों की इच्छा क्या है ।
किशोरीलाल – आप कहो तो हम इस घर से ………..
मीनाक्षी – आप क्यों जाओगे हम ही यहां से चले जाते हैं ।
किशोरीलाल – तुम ?
सुधीर – हां पापा मैं अमेरिका जा रहा हूं। पूरी फैमिली के साथ।
चंदा – सोहन पहले ही अमेरिका जा चुका है। तेरी तो अच्छी खासी कंपनी में नौकरी है ना।
सुधीर – मैं कंपनी स्विच कर रहा हूं पापा। अमेरिका में बहुत अच्छा पैकेज मिल रहा है। सोहन ने ही मेरा रिज़्यूमे एक कंपनी को भेजा था। उन्होने मुझे सिलेक्ट कर लिया ।आइ एम प्राउड आॅफ माइ ब्रदर सोहन।
मीनाक्षी – आपके लिए ये मकान छोड़कर जा रहे हैं जो आपकी कमाई से भले ना बना हो पर है आपके नाम पर ही ।
किशोरीलाल- अपने वतन में भी बहुत सी संभावनाएं हैं बेटा। पूरे विश्व की बड़ी बड़ी कंपनियां
यहां इन्वेस्टमेंट करने के लिए तरस रही हैं ।
सुधीर – ये सब बोलने की बाते हैं पापा। यहां कुछ नहीं होने वाला।
चंदा – तुम सचमुच फारेन जाना चाहते हो या हमसे दूर जाने के लिए …….
मीनाक्षी – बस आपको तो सेंटिमेंटल होने का बहाना चाहिये ।
किशोरीलाल – जाओ बेटे सुखी रहो । हमारी भावनाओं की चिंता मत करो । हम दोनों आप लोगों
के बगैर भी जी लेंगे ।
फ्लैश बैक खतम –
किशोरीलाल – जिंदगी ने ऐसा नाटक खेला कि मैं नाटक करना ही भूल गया था। भला हो मुरारीलाल का जिसने मुझे फिर से नाटकों की ओर बुलाया ।
(थोरी देर के लिये किशोरीलाल और चंदा दोनों चुप हो जाते हैं । कुछ समय बाद)
किशोरीलाल – बाहर गार्डन में चक्कर लगा कर आता हूं। हो सकता है मेरे पेट का दर्द कम हो
जाए ।
चंदा – हां…… अब तो घानी के बैल के समान ज़िंदगी भर चक्कर ही लगाना है ।रूको, मैं भी
आपके साथ चलती हूॅं ।
किशोरीलाल – तेरे घुटने में तो दर्द है ना । सीढ़ी से नीचे कैसे उतरेगी ?
चंदा – आप चिंता मत करो । उतर जाऊंगी दीवार का सहारा लेकर। बहता पानी अगर एक जगह रूक जाए तो उसमें काई जम जाती है ।
किशोरीलाल – तू ही तो घर में बैठी रहती है ? मैं तो तुझे हमेशा कहता हूं कि मेरे साथ बाहर निकल।
मन बहल जाएगा।
चंदा – आप तो खुद को बिज़ी रखकर बैठे हो साहित्य और नाटक की सेवा में।
किशोरीलाल – बच्चों के भरोसे जिं़दगी जीते तो पता नहीं क्या हाल होता। पैकेज पैकेज सुन सुन के
मेरे तो कान ही पक गए हैं। आज एक कंपनी तो कल दूसरी।
चंदा – मियां बीबी मिलकर कमाते हैं फिर भी जिं़दगी में संतोष नहीं है।
किशोरीलाल – सवेरे सात बजे घर से निकलते हैं और रात को देर से लौटते हैं। घर नौकरों के हवाले, बच्चे आया के हवाले।
चंदा – यहां रहते थे तो घर को भी मैं संभाल लेती और बच्चों को भी।
किशोरीलाल – और मैं भी घोड़ा बनकर बच्चों को अपनी पीठ पर बिठाता। याद है जब सुधीर छोटा था
तो मैं पूरे घर में उसे घुमाता था घोड़ा बनकर।
चंदा – पागल हैं। अकेले रहकर भी कभी कैरियर बनाया जाता है ।
किशोरीलाल – उनके मन में ये बात घर कर गई है कि वो यहां रहेंगे तो हम उनसे पैसे मांगेंगे, सेवा
करवाएंगे।
( थोरी देर के लिये दोनों चुप हो जाते हैं । कुछ समय बाद)
चल घर में ही चक्कर लगाते हैं। इधर से उधर ,उधर से इधर। यूं समझ हमारी दुनियां अब इतनी ही बची है।
चंदा – ( उठकर चलते हुए) मैं तो टेंशन की वजह से बीमार पड़ जाती हूॅं ।
किशोरीलाल – फालतू का टेंशन मत लिया कर। (चंदा जोर जोर से खांसती है। किशोरीलाल उसकी पीठ सहलाता है।) डाक्टर की दवाई ली ?
चंदा – हां
किशोरीलाल – समय पर ली ?
चंदा – ली है ना । जल्दी ठीक हो जाऊंगी ।
किशोरीलाल – दोपहर का भोजन समय पर करती है या नहीं ।
चंदा – आप चले जाते हो तो फिर अकेले न खाना बनाने का मन करता है और न ही खाने का ।
किशोरीलाल – तू कहती है तो कल से नहीं जाऊंगा ।
चंदा – वाह कल ही तो कह रहे थे कि रामनवमी नज़दीक आ रही है और मंडल वालों ने
आपसे रामायण का कोई प्रसंग चुनकर नया नाटक लिखने को कहा है ।
किशोरीलाल – हां हां तो घर बैठे बैठे लिखकर दूंगा । रोल नहीं करूंगा। कोई कितना भी फोर्स कर
ले।
चंदा – वैसे भगवान राम का रोल आप पर बहुत जंचता है ।हनुमान के लिए तो वो मुरारी भैया हैं ही। आपके नाटक की आधी कास्टिंग तो मैंने ही कर दी। ठाकुर को लक्ष्मन का रोल दे देना।
किशोरीलाल – देख अब तू मुझे उकसा रही है ।चित भी मेरी, पट भी मेरी। तू कहती है तो रोल कर लूंगा ।लेकिन डाइरेक्शन के लिए मुरारी लाल को ही कहूंगा। उसमें बहुत टाइम देना पड़ता है ।सबको डाइलाग याद करवाओ, रिकार्डिंग करवाओ और एक्टिंग भी सिखाओ।
चंदा – मुरारी भैया का अच्छा है । दोनो बेटियों की शादी अच्छे घरांे में हो गई। अब फ्री
घूम रहा है। हमने बेकार में बेटे पैदा कर लिये ।
किशोरीलाल – तब तो तू भी यही कहती थी बेटों से वंश आगे बढ़ता है। अब भुगत। (एक जगह
बैठ जाती है) अरी बैठ क्यों गई। चल तेरा हाथ पकड़कर ले चलता हंू। कहीं गिर गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे ।
( हाथ पकड़कर उठती है )
चंदा – (चलते हुए) कितने कष्ट सहकर बच्चों को पढ़ाया। अपना मकान छोड़कर उस कालोनी में
किराए का मकान लिया जहां से बच्चो की ट्यूशन की क्लास नजदीक थी। गोद में
सोहन को उठाकर सुधीर की उंगली पकड़कर उसे स्कूल छोड़कर आती थी। बच्चे हमारे सारे कष्टों को बहुत जल्दी भूल गए ।
किशोरीलाल – हम तो अपने मां बाप के कष्टों को कभी नहीं भूले। नई कालोनी के एक रूम में पापड़,
बड़ी, अचार की बर्नियां भरी रहतीं और दूसरे कमरे में हम छह बच्चे । हॅसते रोते कब
रात गुज़र जाती पता ही नहीं चलता था।
चंदा – मेरे मायके का तो और भी बुरा हाल था। वन बी.एच.के । मैं तो बिस्तर की लोहे वाली
पेटी पर गद्दा बिछाकर सो जाती थी। वो भी क्या दिन थे न ।
किशोरीलाल – और शादी के बाद। कितनी दूर दूर तक सामान लेकर साइकल पर जाता था।रोज़ कमाना रोज़ खाना । (चंदा ज़ोर ज़ोर से हंसती है) क्या हुआ ?
चंदा – एक बार किसी ने आपकी सामान से भरी थैली साइकल से चुरा ली ।
किशोरीलाल – हां सवेरे सवेरे की बात थी । मैं घर से निकला ही था। उस चोर को इतना मारा इतना
मारा कि बिचारे को नानी याद आ गई ।
चंदा – अगर वो मर जाता तो ?
किशोरीलाल – मेरी बला से। अरे हम इतनी मेहनत से खून पसीना एक करके कमाते हैं और ये
चोर…..
(किशोरीलाल आगे बढ़कर अलमारी में से कुछ ढूंढता है)
चंदा – क्या ढूंढ रहे हो ?
किशोरीलाल – फोटो का एलबम रखा था ।
चंदा – फिर दोनों बेटों की याद आ गई । मैंने भी देखा तो था ?
किशोरीलाल – मिल गया । देख हमारे ब्लैक एंड व्हाइट फोटो। ये मैं हूं, ये तू है। तेरी गोद में
सोहन और मेरे कांधे पर सुधीर। दिख रहा है ना।
चंदा – मेरी आंखें अब पहले जैसी तेज़ नहीं रहीं । सब कुछ धुंधला धुंधला दिख रहा है ।
किशोरीलाल – मेरे चश्मे से देख। (किशोरीलाल अपना चश्मा उतारकर चंदा को देता है) देख सब लोग कितने खुश हैं । (चंदा चश्मा नहीं लेती। आंसू पोंछकर आगे बढ़ती है) अब तू
कहां जा रही है ?
चंदा – किचन में । आपके लिए दूध गरम करके लाती हूॅं ।
किशोरीलाल – इस उमर में मुझसे अपने आंसू छुपा सकेगी चंदा।
चंदा – दूध गरम करके लाती हूॅं ।साथ में मठरियां भी लाती हूं । अपनी पड़ोसन कमला देकर गई है ।
(चंदा किचन में जाती है। किशोरीलाल मुरारीलाल को फोन लगाता है)
किशोरीलाल – मुरारीलाल ।उससे बात हो गई ना । उसने हां कहा । वेरी गुड । मुरारीलाल यू आर
जीनियस । (चंदा को आते देखकर) देख भाई मुरारीलाल, बता देता हूं । मेरी बीबी
ने डाइरेक्शन के लिए साफ साफ मना कर दिया है ।अब यार उसे भी तो समय देना
ही पड़ेगा न ।तेरा क्या है ।बच्चियां अपने पतियों के पास गई, भाभी भगवान के पास ।इस उमर में दूसरी शादी तो होने से रही। पहली ही तो तेरे से हमेशा परेशान रहा करती थी ।
चंदा – (एक ट्रे में दूध का गिलास और प्लेट में मठरियां लाते हुए ) आप भी न । दोस्तों से
कोई ऐसे बात करता है।
किशोरीलाल – अरे चालीस साल पुरानी दोस्ती है हमारी।
चंदा – पुरानी है तो क्या हुआ ।
किशोरीलाल – देखा मुरारीलाल , मेरी बीबी भी तेरा पक्ष ले रही है। अब तो तुझे हां करनी ही
पड़ेगी ।चल फिर कल मिलते हैं। (फोन रखता है )
चंदा – हां कहा न ?
किशोरीलाल – कैसे नहीं कहेगा ।
चंदा – आप तो दिन भर रिहर्सल करके थक कर आके सो जाते हो । मुझे रात रात भर नींद
नहीं आती है ।
किशोरीलाल – क्यों ?
चंदा – डर लगता है कहीं रात को सो गई और सवेरे उठी ही नहीं तो ? आप क्या क्या
संभालोगे ? मेरी लाश को कांधा देने के लिए चार लोग भी नहीं मिलेंगे ।
किशोरीलाल – वो तो मैं अपनी नाटक मंडली वालों को पकड़कर लाऊंगा। मैं चला गया तो तू कैसे
करेगी ।
चंदा – (हंसते हुए ) मैं भी उन्ही को पकड़कर लाऊंगी ।(दोनों ज़ोर ज़ोर से हंसते हैं । चंदा हंसते हंसते सीरियस हो जाती है) मजाक की बात छोड़ो। बच्चों को फोन करो।
किशोरीलाल – नहीं हरगिज नहीं। मर जाऊंगा पर बच्चों से रहम की भीख नहीं मागूंगा ।
चंदा – तो फिर हमारा क्या होगा ?
किशोरीलाल – मुरारीलाल ने इसका भी हल निकाला है ।
चंदा – मुरारीलाल ने ?
किशोरीलाल – हां। मुरारीलाल ने। अब हम अकेले नहीं रहेंगे चंदा। और यहां भी नहीं रहेंगे।
चंदा – तो ?
किशोरीलाल – सब लोग मिलकर वृद्धा़़श्रम में रहेंगे ।
चंदा – वृद्धा़़श्रम ?
किशोरीलाल – हां चंदा, आखरी समय में सबको सहारा चाहिये ।बच्चों का ना मिले तो दूसरों का
सही। पता नहीं कब किसकी सांस आखरी सांस बन जाए। ऐसे समय में संगी साथी
आसपास हो तो दिल को सुकून मिलता है। ये घर हम समाज सेवा के लिए दान में दे
देंगे ।
चंदा – एक बार बच्चों से पूछ लें ?
किशोरीलाल – वो हमें फोन नहीं करते, हमसे मिलने नहीं आते और हम ….. मुरारीलाल ने सबको मनाया है। सिर्फ मैं ही सोच रहा था कि तू वहां चलने के लिए राज़ी होगी या नहीं ।
चंदा – मैं तो आपकी अर्धांगिनी हूं। जहां आप वहां मैं।
(किशोरीलाल चंदा के हाथ पर अपना हाथ रखता है। म्यूज़िक बजती है।)
(समाप्त)

किशोर लालवाणी

फ्लैट नंबर 13, गुरू नानक सोसाइटी, नारा रोड, जरीपटका, नागपुर