कोई फर्क नही जब किसी के जूते पड़ जाए
कोई फर्क नही जब किसी के जूते पड़ जाए
हमे तब भी फर्क नही जब कि बुथें कम जाए
हैरानी तो तब होगी हम भारतीयों को जबकि
राष्ट्रहित में इस राजनीति के मंसूबे थम जाए
कोई फर्क ,,,,,,,,,,,,,,,,
कोई कह रहा है मैच पुलवामा में फिक्स था
तो किसी के ह्रदय में सबूत देने में रिस्क था
करो चाहे जैसी बयानबाजी शौर्य पर आप
पर बनो ताकत ताकि उनके सूबे जल जाए
कोई फर्क,,,,,,,,,,,,,,,
जिसने पापा को नन्हे हांथो से विदा किया
एक सुहागन ने सुहाग मांग से जुदा किया
बढ़ाओ ना तकलीफे उस परिवारों की तुम
जो शहीद की याद करकर भूखे रह जाए
कोई फर्क,,,,,,,,,,,,,,
एतराज नही जब कोई लाल गमछा डाले
सरोकार नही जब कोई बन चमचा जाए
हमारी पैरोकारी तो बस इतनी सी है कि
वतन पर घात करने वाले भूखे मर जाये
कोई फर्क नही जब किसी के जूते पड़ जाए
हमे फर्क तब भी नही जब कि बुथें कम जाए
— संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”