परीक्षा
आया अब परीक्षाओ का मौसम
पढकर बच्चों की आँखे हुई नम
पूरे साल पढ़कर भी डर होता है
फिर भी उनकी उम्मीदे नहीं कम
पढ़ाई में अब मन नहीं है लगता
पीछे रहेने से दिल मेरा घबराता
पापा की डाँट, पड़ेगी सोच कर
डरकर ही सही, दिन रात पढ़ता
परीक्षा बच्चों की, जैसे बीमारी
बढ़जाती देखो,. इनकी लाचारी
आता है जब परीक्षा का मौसम
बच्चों किताबे, होती दुनियादारी
यार दोस्तों से, मिलन हुआ मंद
टीवी, खेल, कूद, अब हुए बंद
परीक्षाये जब तक होती नहीं है
दिलो में नहीं होता कोई आनंद
साल भर पढ़े फिरभी कम ज्ञान
हर घड़ी अब किताबों में ध्यान
साल भर की महेनत मेरी व्यर्थ
मत जाने देना, ओ मेरे भगवान
अंत में लगता जीती कोई जंग
खेलते जब यार दोस्तों के संग
ये है परीक्षा, मौसम का असर
रहेते दिल में ‘राज’ कई उमंग
— राज मालपाणी ”राज”
शोरापुर, कर्नाटक