गीतिका
मापनी -1222 1222 1222 1222, समान्त- आर का स्वर, पदांत- हो जाना
अजी है आँधियों की ऋतु रुको बहार हो जाना
घुमाओ मत हवाओं को सुनो किरदार हो जाना
वहाँ देखों गिरे हैं ढ़ेर पर ले पर कई पंछी
उठाओ तो तनिक उनको नजर खुद्दार हो जाना।।
कवायत से बने है जो महल अब जा उन्हें देखो
भिगाकर कौन रह पाया तनिक इकरार हो जाना।।
बहुत शातिर हुए अपने समय के जो परिंदे उड़
कहीं उनसा न इतराना भरे बाजार हो जाना।।
बहाकर बाढ़ ले जाती नहर मोती तलहटी से
न पानी से कभी लड़ना जिकर अख़बार हो जाना।।
गरज मजबूर करती है इरादों को बदल देती
मगर विश्वास पर चलना पहर परिवार हो जाना।।
न गौतम से छुपाना कुछ उसे अपना बना लेना
विचारे नेक मानव बन जिगर करतार हो जाना।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी