जिन्दगी और मौत,
अठन्नी के हेड और टेल है ।
चली जब तक चली ,
रूकी जिन्दगी फेल है ।।
न मकसद्, न मंजिल,
क्यूं ही फिरते है हम ।
हेड को लिए संग में ,
टेल की खातिर फिरते है हम ।।
जिंदगी कभी चालू दुकान ,
तो कभी ओपन सेल है ।
चली जब तक चली ,
रूकी जिन्दगी फेल है ।।
टेल मैं नही चाहता,
वे ही आप नही चाहते ।
जिंदगी बदलती है पर,
टेल के खेल फेल नही जाते ।।
जिन्दगी और मौत अन्ततः ,
सच में खुशियों की रेल है ।
चली जब तक चली ,
रूकी जिन्दगी फेल है ।।
रोते रोते हंस लेना भी,
जीवन एक दो नाम है
जागरण ही है दिवाकर,
सोये वो ही वक्त शाम है ।।
जीवन के तो इससे भी कई ,
न्यारे – न्यारे खेल है ।
चली जब तक चली ,
रूकी जिन्दगी फेल है ।।
— मुकेश बोहरा अमन