लघुकथा संवाद
नमस्कार मित्रों, कुछ समय पहले ही आदरणीया कल्पना भट्ट दीदी द्वारा लिखित किताब ” लघुकथा सम्वाद ” मिली। मैं इस किताब को पूरे इत्मीनान से पढ़ना चाहती थी इस कारण कुछ दिन पहले मैंने इस किताब को पढ़ना शुरू किया और आज इस किताब को जब पूरा पढ़ लिया तब एक लंबी सांस के साथ किताब हाथ मे रखकर कुछ पल सोचती रही। क्यों? बताती हूँ-
यह किताब साक्षात्कार आधारित है जिसमें देश के नामी 21 साहित्यकारों द्वारा लघुकथा विषय पर विभिन्न प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं।
आरम्भ में ही कल्पना दीदी के वक्तव्य को पढ़ कर लगा कि इस प्रश्नोत्तरी को तैयार करना इतना कठिन कार्य नहीं था जितना कठिन रहा उन प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करना क्योकि कुछ वरिष्ठ साहित्यकारों को ये प्रश्न बचकाने और निर्रथक लगे थे इस कारण उन्होंने जबाब देने से मना कर दिया।
एक बच्चा जब बोलना सीखता है, उसकी आस-पास के परिवेश को समझने की क्षमता जब विकसित होने लगती है तब वह नाना प्रकार के शब्द बोलता है व प्रश्न करता है यदि आरम्भ में ही उसके प्रयासों व प्रश्नों को नकार दिया जाय या फिर वर्णमाला के स्थान पर सीधे व्याकरण पढ़ाना शुरू कर दिया जाय तब क्या उसकी योग्यता का विकास सम्भव है? बिना आरंभिक सीढ़ियों पर पैर रखे ऊंची सीढ़ियों तक कैसे बढा जा सकता है!
लघुकथा सम्वाद में ऐसे ही प्राथमिक प्रश्न हैं जैसे- लघुकथा अच्छी हुई इसे कैसे समझा जाए? लघुकथा का मारक क्या होना चाहिए? सोशल मीडिया पर लिखी लघुकथाएं नवोदितों के पढ़ने के लिए लाभप्रद हैं? आदि
ये सभी प्रश्न ऐसे है जो एक छोटा बच्चा यानि लघुकथा के क्षेत्र में चलना सीखना शुरू करने वाले शिशु मन मे जन्म लेते हैं।
लघुकथा समझने के लिए किताबें कैसे मिल सकती हैं? यह एक गम्भीर प्रश्न है क्योकि लघुकथा पर आरम्भ में जानकारी बिल्कुल न्यून मात्रा में मिल पाती है जो कि नाकाफ़ी है। नया लेखक किसी से परिचित नहीं होता आरम्भ में जो उसे इस विषय मे जानकारी दे सकें साथ ही जानकारी देने में भी कुछ लोग व्यस्तता का प्रदर्शन करते हैं।
कम शब्दों में बस इतना कहूँगी यदि आप वरिष्ठ साहित्यकारों से लघुकथा के सम्बंध में जानकारियां चाहते है तो यह किताब एक बहुत अच्छा माध्यम है। एक ही प्रश्न पर 21 साहित्यकारों के सुगठित उत्तर व नज़रिए का अध्यन निःसंदेह के प्रश्नों का निराकरण तो करता ही है साथ लघुकथा के कलेवर- फ्लेवर और विन्यास को समझने में भी सहायता करता है।
योगराज प्रभाकर सर ने नवोदित लघुकथाकारों की कालजयी रचनाओ के प्रति बहुत अच्छी बात कही है- “सैलाब में वही वृक्ष उखड़ते हैं जिनके पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं होती। ”
पुष्करणा सर ने लघुकथा में किसी खास शैली के प्रयोग की अपेक्षा शिल्प पर विशेष ध्यान देने की बात कहते हुई शैलियों के प्रयोग पर अपना मत प्रस्तुत किया है।
संजीव वर्मा ‘सलिल’ सर ने शैली के प्रयोग पर सार्थक वक्तव्य दिया कि रचनाकार विषय के अनुरूप शैली का चयन करता है। हर शैली का चयन करने के पीछे वजह अलग होती है।
बलराम अग्रवाल सर की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी, ” नए लेखक को प्रतिष्ठत लेखकों की रचनाओं के अध्ययन द्वारा लेखन के अभ्यास में उतरना चाहिए न कि कलम पकड़कर लिखना सिखाने वाले की तलाश में भटकना।” और दूसरी बात ” अपनी आलोचना सुनने का धैर्य होना “।
इस पुस्तक में अनेक स्थानों पर पाठक ,लेखक और समीक्षक की भूमिका में रहते हुए अलग – अलग मत दिए गए है, बेशक विचारों को अलग- अलग रूप दिया गया है मगर बहुधा सभी प्रश्नों के उत्तर पर एकमत जवाब हैं।
दिशा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित श्रीमती कल्पना भट्ट जी की यह पुस्तक अपने सुंदर कवर पेज ,स्पष्ट मुद्रण के साथ रोचक जानकारियों को समेटे एक संग्रहणीय पुस्तक है। इस पुस्तक हेतु कल्पना दी और पुस्तक के प्रणेता आदरणीया डॉ सतीशराज पुष्करणा जी को साधुवाद
मेघा राठी