गीत – उर-वेदना
पास उर के मेरे है , मेरी वेदना ।
आँसुओं से सनी है मेरी कल्पना।
हाय संदेह के विष से सींची गई,
सूखती ही गई बेल विश्वास की ।
भक्ति कैसी की, जब आस्था ही नही?
भक्ति की आस्था भी वृथा नाश की।
हाय! रुक जाओ,न सूख जाये लता
निर्दये ! तुमसे है यह मेरी याचना ।
पास उर के…………
अश्रु का मोल तुम क्या करोगे सखे ?
तुमने पीड़ा के फल को चखा ही नही।
तुम मेरे दुख को अपना समझते ही क्यों,
तुमनें अपनों में मुझको रखा ही नही ।
क्रोध की आग में भाव सब जल गये,
शून्य होती गई तेरी संवेदना ।
पास उर के मेरे………………
मेरे किरदार पे तुमनें शक भी किया,
उंगलियाँ मेरी छवि पे उठाते रहे ।
बात से घात उर पे किया आपने ,
घाव पे घाव फिर दोहराते रहे ।
इस तरह मेरा अंतस दुखाओ न तुम,
ग्लानि में मुझको साँसे पड़ें थामना।
पासे उर के…………………..
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी