गीत (सार छंद)
परउपकारी जो नर होते, वही धरा सुख पाते।
सदा यही कर्तव्य मनुज का, सभी धर्म बतलाते।
तरुवर फल से लदे रहें पर, निज पर नहीं लुटाते।
सागर यदि स्वम ही जल पीते, तो सूखे हो जाते।
ध्येय बना लो दया धर्म को, ईश्वर राह दिखाते।
सदा यही कर्तव्य मनुज का, सभी धर्म बतलाते।
जीवों पर उपकार करें जो, अन्तर्मन खुश होता।
जो स्वारथ की करे कमाई, अंत समय मे रोता।
परमार्थ का धन संचय हो, पुण्य यही कहलाते।
सदा यही कर्तव्य मनुज का, सभी धर्म बतलाते।
अपने श्री मुख मनुज आप ही, निज की गाथा गाये।
खुद की मान्, प्रतिष्ठा का ही, परचम जो लहराए।
ऐसे गर्वित पुरुष जगत में नहीं किसी को भाते।
सदा यही कर्तव्य मनुज का, सभी धर्म बतलाते।
— रीना गोयल (हरियाणा)