लघुकथा

लघुकथा – विरह-गंधा

कन्हैया जी अकेले बैठे हैं। घर मे सारी सुख-सुविधा है। दो बेटे, एक नई नवेली पुत्र बधू भी है। सभी नौकरीपेशा है, दिन कट जाता है जैसे-तैसे। थक-हार कर शाम भारी मन सी लगती है। कुछ दिनों पूर्व पत्नी बड़े बेटे के पास गई थी, उसे नए मकान में शिफ्ट कराने।
‘देखो, घर में जैसा भी खाना मिले खा लेना। बच्चों को कुछ मत कहना। थोड़े दिन की बात है एडजेस्ट कर लेना।’ पत्नि के बोले गए शब्द कानों में गूंजने लगे।
‘ह्म्म्म..’ भारी मन से कन्हैया लाल ने हामी भरी थी।
अब किस को क्या कहे कि कभी खाने में नमक तेज़ हो जाता है, कभी रोटी इतनी सख़्त होती है कि जबड़े से चबाना मुश्किल हो जाता है। सुबह की चाय तो छोटा बेटा दे जाता है। सब अपने अपने कार्यो में इतने व्यस्त है कि आपसी संवाद शून्य हो गया है। बस खाना बनाने, खाने तक की औपचारिकता रह गई है। घर के कोने आबाद है सिर्फ लाइव टीवी, लेपटॉप, वट्सअप, फ़ेसबुक…आभासी दुनियाँ।
‘आज घर आने में देर कैसे हो गई, सब ठीक तो है ना’
‘लो जी, आज आपकी पसन्द की सब्जी बनाई है।’
‘आपके धुले, प्रेस किये कपड़े निकाल दिए है जो आप पर खूब फबते है’
एक एक वाक्य, घटना उन्हें याद आ रही थी।
इस पल तो कन्हैया के होठों पर मुस्कान आ गई, उन्हें याद आया कि विवाह की वर्षगांठ पर घर के सारे काम काज जल्दी निपटा लिए थे।
साथ में खाना खाते वक़्त उनकी नज़र सुगंधा के हाथ पर पड़ी, ‘ अरे ये, तुम्हारी अंगुली को क्या हुआ?’
‘क.. क.. कुछ नहीं, बस रोटियां सेंक रही थी तो थोड़ा सा गर्म तवा लग गया, और कुछ रोटियां भी जल गई।’ छुपाते हुए पत्नि ने कहा।
‘ओह! कहाँ है जली हुई रोटियां? मुझे दो मैं खाऊंगा।’
‘अरे नही, रहने दो। मैं खा लूँगी, आप यह रोटियां खाइये।’
उस दिन दोनों ने मुस्कुराते हुए, मिल बांट कर प्रेम से खाना खाया था।
आँख मूंदे वह सोच ही रहे थे कि मोबाइल बज उठा।
‘हेलो..सुगंधा बोल रही हूँ।’
‘हाँ  मैं…’
‘ये मैं, मैं..क्यों कर रहे है आप। मेरे जाते ही बकरी जैसे हो गए? हा हा हा… अच्छा ये बताओ कि खाना खाया या नहीं…’
‘सुगंधा…. अब आ भी जाओ तुम…बहुत हुआ विरह’ बस इतना ही कह पाए और फोन स्विच ऑफ कर दिया क्योंकि विरह-गंधा को बहुत नजदीक से महसूस कर चुके थे कन्हैया जी।

रतन राठौड़

नाम : (रतन कुमार सिंह) स्थान: जयपुर जन्मतिथि: 14नवम्बर1963 योग्यता : विज्ञान स्नातक व्यवसाय: राजस्थान सरकार में सहायक लेखाधिकारी के पद पर जयपुर में कार्यरत। वर्ष 1978 से लेखन कार्य शुरू किया एवं पहली कहानी "पत्र में तूफान" प्रसारित हुई। वर्ष 1992 तक आकाशवाणी,जयपुर के "युववाणी" कार्यक्रम से जुड़कर अनेक कहानियाँ "परोपकारी बाबा जी", "उपहार" आदि तथा कविताये प्रसारित। आकाशवाणी के कार्यक्रम नव-तरँग एवं अनेक संगोष्ठी तथा परिचर्चाओं का संचालन किया एवं भाग लिया। वर्ष 2016 में FM आकशवाणी जयपुर से नाटक प्रसारित हुआ। वर्ष 1992 से जयपुर रंगमंच से जुड़ा हुआ अनेक नाटकों में भाग लिया। नाट्य लेखन, निर्देशन और मंचन किया। राष्ट्रीय स्तर पर नागपुर(महाराष्ट्र), लखनऊ(उत्तर प्रदेश) आदि स्थानों पर मंचित नाटकों में भाग लिया। अनेक टीवी सीरियल्स, टीवी विज्ञापन और क्षेत्रीय एवं हिंदी फ़िल्मों में काम किया है जो सोनी(क्राईम पेट्रोल), ई टीवी राजस्थान(दास्ताने जुर्म), डी डी राजस्थान(ब्याव रो लाडू, कुँम कुँम रा पगलिया) व अन्य धारावाहिक आला-उदल, नानी बाई रो मायरो, प्रथा आदि के अलावा 'ओ रब्बा अब क्या होगा' , 'ममता' राजस्थानी फ़िल्म में काम कर चुके है। हिंदी चिल्ड्रन फ़िल्म "देख इंडियन सर्कस" वर्ष 2012 की बेस्ट इंडियन चिल्ड्रन फ़िल्म का अवार्ड भारत सरकार से मिला, कुल चार अवार्ड भारतीय और चार इण्टर नेशनल अवार्ड इस फ़िल्म को प्राप्त हुए है। अनेक लघुकथाओं एवं कविताओं, गीतों आदि को सोशल मीडिया पर श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में सम्मानित किया गया एवं अनेक राष्ट्रिय समाचार पत्रों में लघु कथाएं/रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है। प्रकाशित पुस्तकें :- (वर्ष 2017) साझा लघुकथा संग्रह "अपने अपने क्षितिज" ; साझा काव्य संग्रह "काव्य सुरभि" (वर्ष 2018) लघुकथा संग्रह "सहमे से कदम" ; काव्य संग्रह "भाव मनोभाव" प्राप्त सम्मान :- "दृश्य-भारती" सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था, जयपुर द्वारा अभिनय के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। "वनिका पुब्लिकेशन्स" द्वारा उत्कृष्ट लेखन के लिए "लघुकथा लहरी सम्मान"; "मुंशी प्रेम चंद कथाकार 2016" सम्मान, "साहित्य साधक सम्मान 2017", "डॉ. महाराज कृष्ण जैन सम्मान 2018" माननीय श्री गंगाप्रसाद जी, राज्यपाल, शिलांग(मेघालय) द्वारा प्रदान किया गया। अंतरराष्ट्रीय बोल हरियाणा चैनल पर प्रसारित लघुकथाएं:- 1. निदान 2. कॉकटेल एफ.एम आकाशवाणी, जयपुर से कहानी "रिश्तों की सुगंध" प्रसारित पता:- 1/1313, मालवीय नगर, जयपुर-302017 मोबाइल:- 9887098115 Email: [email protected]