ग़ज़ल – इंसानियत से प्यार जब दीन-ओ-जान हो जायेगा
इंसानियत से प्यार जब दीन-ओ-जान हो जाएगा
मुज़्तरिब हाल में हाथ थामना ईमान हो जाएगा
रस्म है, ज़िंदगी करवटें बदलती रही इब्तिदा से
शिद्दत से जिया जो मालिक मेहरबान हो जाएगा
ख़ुद से मुलाक़ात कीजिए रोज़ाना आईने के रूबरू
बिख़र गया चकाचौंध में फिर इंसान हो जाएगा
हो गया ख़ामोश गिर कर इंसाँ तौबा भी कीजिए
उठ के देखिए तो, झुकने को आसमान हो जाएगा
सख़्त राह पे सीख लिया जो अश्कों को पी जाना
तिरि इस अदा पर कोई अपना क़ुर्बान हो जाएगा
फ़ब्तियाँ शहर-भर की झेलिएगा बड़ी नफ़ासत से
चुप हो जाएँगी ज़बाँ ज्यूँ जज़्बा चट्टान हो जाएगा
इल्ज़ामात क्या इम्तिहान बस थोड़ा सब्र कीजिए
शाम-ए-वस्ल पर ‘राहत’ इश्क़ जवान हो जाएगा
डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’